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________________ उक्त परिप्रेक्ष्य में मैं कर्मों से मिश्रित अनादिकाल से संसार रूपी भवसागर में भटकता आया हूँ। इन कर्मों से मेरे आत्मा के स्वाभाविक गुण प्रकट नहीं हो पा रहे हैं। नामकर्म व आयुकर्मों के कारण मैं विभिन्न गतियों (देव, मनुष्य, नारकी, तिर्यञ्च), शरीरों, पर्यायों, आकारों आदि अशुद्ध आत्मा के रूप में भटकता रहा हूँ। वर्तमान में मैं त्रस पर्याय, मनुष्य गति, संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक तैजस और कार्माण शरीर सहित हूँ। संदर्भ१. द्रव्य संग्रह- आचार्य मन्नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, हिन्दी टीकाकार- मुनि श्री १०८, सुन्दरसागर। २. पद्मनन्दि पंचविशंति--- रचियता आचार्य श्री पद्मनन्दि जी, अनुवादक- श्री पं० बालचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री। अधिकारान्त मङ्गलाचरण पंच भरत, पंच ऐरावत, त्रिकालवी सात सौ बीस तीर्थंकरों के चरणों में मेरा त्रियोग सम्हालकर बारम्बार नमोऽस्तु। __मेरा जम्बूद्वीप में अवस्थित भरतक्षेत्र के त्रिकालवर्ती बहत्तर तीर्थंकरों (*अतीत : १- श्री निर्वाण, २- सागर, ३- महासाधु, ४-- विमलप्रभ. ५- श्रीधर, ६- सुदत्त. ७- अमलप्रभ. ८- उद्धर. ६अंगिर, १०- सन्मति, ११- सिंधु, १२-- कुसुमांजली. १३- शिवगण. १४-उत्साह, १५-झानेश्वर, १६-- परमेश्वर, १७- विमलेश्वर. १५- यशोधर, १६- कृष्णमति, २०- ज्ञानमति, २१- शुध्यमति, २२ श्री मद, २३- पदमकान्त, २४- अतिक्रान्त । वर्तमान : + ऋषभदेव, आदिनाथ, वृषभनाथ **२.- अजितनाथ, ३- सम्भवनाथ, ४- अभिनन्दननाथ, ५- सुमतिनाथ, ६- पद्मप्रभ, ७सुपाश्वनाथ, ८- चन्द्रप्रभ, ६- पुष्पदन्तनाथ, सुविधिनाथ, १०- शीतलनाथ, ११- श्रेयांसनाथ, १२वासुपूज्य , १३- विमलनाथ, १४- अनन्तनाथ, १५- धर्मनाथ, १६- शान्तिनाथ, १-कुंथुनाथ, १८- अरहनाथ, १६- मल्लिनाथ, २०- मुनिसुव्रतनाथ, २१- नमिनाथ, २२– नेमिनाथ अरिष्टनेमि, २३- पार्श्वनाथ, २४- वीर, अतिवीर, सन्मति, महावीर, चर्द्धमान। *भविष्यत : १ महापदम, २ सुरदेव, ३-- शुपार्श्व, ४- स्वयंप्रभ, ५- सर्वात्ममूत, ६- देवपुत्र, ७- कुलपुत्र, ८- उदक, ६प्रोष्टिल, १०- जयकीर्ति, ११- मुनिसुव्रत. १२- अरनाथ, १३– नि:पाप. १४- निःकषाय, १५- विमल, १६- निर्मल. 9- चित्रगुप्त, १८- समाधिगुप्त, १६- स्वयंभू, २०- अनिवर्तक, २१-जय, २२- विमल, २३-देवपाल. २४- अनन्तवीर्य ।) के चरणों में त्रियोग सम्हालकर बारम्बार नमोऽस्तु। * स्त्रोत : श्री माघनंद्याचार्य विरचित शास्त्रसार समुच्चय हिन्दी टीकाकार विद्यालंकार श्री १०८ आचार्य देशभूषण जी महराज | वृषभ = प्रधान । वृषभनाथ अर्थात प्रधान पुरुर्षों के स्वामी । * १.१०६
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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