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________________ इस पवित्र चरण जल को विश्ववंद्य मुनीश्वर, ध्यानी, तपस्वी, इन्द्रादिक देवता, चक्रवर्ती आदि महापुरुष भी नित्य ही अपने मस्तक पर धारण करते हैं। हे प्रभो, आपके चरणों का यह जल निश्चित ही मेरे समस्त दोषों को दूर करेगा।।७।। ।। ॐ शांति: शांतिः शांतिः । मंगलं भूयात् ।।श्रीः ।। कायोत्सर्ग (खड़े) अवस्था में, आंखें बंद करके, अपने ev के मध्यम से दिव्य सिंहासन बनायें। फिर जिस भगवान की प्रतिमा का आप अभिषेक करना चाहें, उस जिनालय की प्रतिमा जी को, उन भगवान को नमोऽस्तु व शिरोनति करके एवम् प्रार्थना कर अनुमति लेकर, उस दिव्य सिंहासन में प्रतिष्ठित करें। फिर इस सिंहासन को अपने सिर पर विनयपूर्वक रखकर, अपने स्व-स्थान आजायें। उक्त क्रिया करके पुनः उन भगवान को नमोऽस्तु व शिरोनांते करें। फिर यह कल्पना करें कि आपके दोनों हाथों में दो स्वर्ण कलश हैं जिनमें अभिषेक के योग्य जल भरा हुआ है। फिर “सहस अठोतर कलशा प्रभुजी के सिर दुरें पढ़ते हुए आप प्रतिमाजी का अभिषेक करें एवम् इसके फलस्वरूप उस पवित्र गन्धोदक से आपके समस्त आत्मा में स्नान हो रहा है, ऐसा अनुभव करें। इस स्नान से आपकी अशुद्ध आत्मा धीरे-धीरे स्वच्छ होती हुई, ज्योतिर्मयी चिच्चमत्कारपूर्वक हो रही है। देर तक इस अनुभव का लाभ लें। फिर जिस प्रकार आप प्रतिमाजी को लाए थे, उसी प्रकार उस जिनालय में विनयपूर्वक, उन भगवान को कृतज्ञता प्रदर्शित करते हुए विराजमान करदें। ततपश्चात् प्रतिमा जी को बार-बार नमोऽस्तु करें, शिरोनति करें एवम् आवर्त करके, ev से दिव्य सिंहासन बनाने के लिए धन्यवाद दें और उससे इस प्रकार कहें कि चूंकि दिव्य सिंहासन से अभीष्ट कार्य हो चुका है, अतएव अब उसे हटादें । इसको सुनिश्चित करके वापस अपने साधारण अवस्था में आजाएं। कुछ समय तक इस अनुभूति का आनन्द उठायें, फिर प्रसन्नतापूर्वक आंखें खोलकर हाथ जोड़कर णमोकार मंत्र का उच्चारण करें। आप अपने को पहले से कहीं अधिक ६.१४
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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