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________________ कोई बालक सामने थाली में रखे पानी में पड़ रहे चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को पकड़ने का प्रयास करे, अथवा विद्वज्जनों द्वारा मूर्खता के कारण हँसी का पात्र होने पर भी आकाश को मापने का प्रयास करे। बाबजूद इसके आगे के अध्यायों में इस विषय में परोपकार की भावना से ध्यान के विषय में कुछ लिखने की चेष्टा की गयी है। मेरी पंच परमेष्ठी, जिनवाणी एवम् विद्वज्जनों से विनम्र प्रार्थना है इसमें सम्भावित भूलों अथवा अशुद्धियों के लिए मुझे उदारतापूर्वक क्षमा करेंगे। अध्याय इस भाग में वर्णित अध्यात्म के लिए योग्यता आशा है कि पाठको ने अब तक ३. ४. १. गुरु, गुरु की अनुपस्थिति में जिन मन्दिर में विराजित देव अथवा इन दोनों की अनुपस्थिति में जिनवाणी की साक्षीपूर्वक तीन मकारों (मद्य, मांस, मधु), पंच उदम्बर (बड़, पीपल, पाकर, कठूमर, अंजीर ) मक्खन, सप्त व्यसन (द्यूत, मांस, मद्य, शिकार, चोरी करना, वेश्यागमन, परस्त्रीगमन), रात्रि भोजन (कम से कम अन्न) का त्याग कर दिया होगा । ५. भाग १ लिया होगा । अध्यात्म व भाग ४ - गुरु, देव अथवा जिनवाणी की साक्षीपूर्वक कुछ नियम, जैसे देव दर्शन सम्बन्धी, पानी छानकर पीना, दैनिक स्वाध्याय, दान, चमड़े की वस्तुओं का त्याग, अभक्ष्य का त्याग आदि ले लिए होंगे। - २ - प्राण ऊर्जा विज्ञान का गहन अध्ययन कर ६.६ इस भव सागर के अन्तहीन भ्रमण से निकलने का संवेगपूर्वक दृढ़ मन बना लिया होगा । पंच परमेष्ठी का ध्यान, स्मरण एवम् मनन का जुनून हो गया होगा, क्योंकि "नहिं त्राता, नहिं त्राता, नहिं त्राता जगत्रिय, वीतराग परो देवो न भूतो न
SR No.090007
Book TitleAdhyatma aur Pran Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakhpatendra Dev Jain
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1057
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Yoga
File Size15 MB
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