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अध्यात्म बारहखड़ी खुरो श्रृंग धीस पिहोरा समे, तुझे नहे, व्याय आंत्रया भर जे। .. तु ही है जु खूटा तिहार हि जोरै, मुनी वीतरागा विभावा जु तौर।। ३० ।। रहैं खूट सा नाध कूटस्थ साधू, समाधि स्थिता एक तोही अराधू। करौ खूट सा मोहि ध्याता अकंपा, इहै तोकना नाथ मांौं अचंपा ।।३१। तु ही खेचरा खेचरी मुद्रा धार, सवै खेचरा एक तोही निहारे। किये खेचरा पार तँ ही घनें ही, हमों पैं कहां नाथ जावै गर्ने ही॥३२ ।। जु देवा सुधारे सुदैत्या सुधारे, सुविद्याधरा नाथ से ही उधारे। सुपक्षी उधारे मुनी तैं उधारे, तु ही खेचरो खेचरानंत तारे॥ ३३ ।। कहे खेचरा ते चलें जे अकासे, गने भूचरा भू पर जे विकासैं। रमैं इंद्रियो मैं जु संसार जीवा, सु ते हू कहे खेचरा इंद्रि पीवा ।।३४॥ तु ही जीव नाथा तु ही जीव तारा, तु ही है दयापाल जैनी अपारा । असंख्यात खेटा असंख्यात ग्रामा, जु तेरै तु ही राव दीसै अकामा।। ३५ ।। असी औ मसी नाथ वाणिज्य खेती, सवै धंध भावा तजै चित्त सेती। तबैं तोहि पांव तजे सर्व खेदा, तु ही है अखेदा अभेदा अछेदा ॥३६॥
– चौपड़ी - खेडापति तू खेल न कोय, खेवट तो सम और न होय। भवसागर अति गहर अथाह, पार करैया तू जु अमाह ।। ३७।। खैर लभ्य तू इंद्रि अगम्य, ज्ञानगम्य तू केवलरम्य । खोदि करम क्षोणी ते देव, काढे स्तन सुगुन अतिभेव ।। ३८ ॥ खोट न तेरै घट मैं कोई, घट पटादि ज्ञायक तू होई। खोसि न सकही तिनकों कोय, जिनके सिर परि तू प्रभु होय॥३९॥ खौध कहावै इंद्रिय साथ, तोहि न पाय सबै जगनाथ। खौरि न तिलक न तेरै सीस, त्रिभुवन तिलक तु ही जगदीस ।। ४० ।। खौटे मिथ्यादिक जु विभाव, तैं सूधे कीये जगराव । खं इंद्री तू इंद्रिय दूर, खं आकास समो भरपूर ।। ४१॥