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________________ ८४ अध्यात्म बारहखड़ी - दोहा -- ख कहिये आकास कौं, तू आकास स्वरूप। शुद्ध चिदाकासा प्रभू, आनंदी सद्रूप।।६।। ख कहिये इंद्रीनि कौं, तू इंद्रिनि से दूर। मन वच बुद्धि सुधि के पर, निज स्वरूप भरपूर ।।७।। खर तीक्षण को नाम है, खर किरण जु है भान। भान चंद इंद्रादि हु, लोहि भा. गांग ।।४ . खर कठोर को नाम हैं, तजै कठोर स्वभाव । तव तोकौं पार्दै प्रभू, तू दयाल भवनांच॥९॥ खर समान ते नर कहे, जे नहि ध्यानै तोहि। खर कै पीठि जु भार है, इनकै परिगह होहि ।। १०॥ - चौपड़ी - खल भावनि को त्यागि नाथ, मैं खल करयौ न तेरौ साथ। तू ख जीत भवभाव अतीत, खगपति पूजहि तोहि अजीत॥११॥ खरतर वात जु तोहि सुहाय, कपट न भावै तोहि जु राय। तोहि खगेंद्र नरेंद्र सुरेंद्र, जपहि फणिंद्र सुचंद्र मुनिंद्र ॥१२ ।। खग कहिये नभ मांहि विहार, जिनको अथवा इंद्रिय प्रचार। खग जु नाम चारन मुनि होय, खग सुर असुर विद्याधर जोय ॥१३ ।। सेवै सर्व खगा जग जीव, इंद्रिनि मैं विचरै जु सदीव। पक्षनि हूं को है ख़ग नाम, तू सव कौं सुखदायक राम ।।१४।। खग अनंत कीने निसतार, खगतारक तू खगपति सार। खडगादिक सहु त्यागि जु शस्त्र, भनँ दिगंबर रहित जु वस्त्र ॥१५॥ वस्तु खटाय जाय तजि स्वाद, सो तेरौ श्रुति कहइ अखाद । सर्व अभक्ष तमैं तुव दास, श्रुति आज्ञापाल गुन रास॥१६॥ ख्यात रूप तू ख्याति वितीत, ख्याति त्याग घ्यांवें जु अतीत । ख्यात किये 6 आतम धर्म, है विख्यात महा तू मर्म ॥१७॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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