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अध्यात्म बारहखड़ी
पर दुख देखि न कसके हीयो, पर सुख हरत सकै नहि जीयो। तिन दुष्टनि कै तेरी भक्ती, कहां पाइए नाथ सुयुक्ती॥ २४॥ शाह कारद्ध कलिंग कमेट, गंधयो भान जु राति बसेरू। कटहल कमरख अर कचनारा, त0 कठूमर दास तिहारा ॥२५॥ कच नख वृद्धि न तेरै होई, महामनोहर रूप जु सोई। कषा दुखनि को तू जिनराया, जीव रषिक तू रहित कषाया ॥२६ ।। कलमष हरन करन विधि तू ही, कलह कलभ की सिंह प्रभू ही। करि तारक तू कपि जु उधारा, तू कृतज्ञ कृतघनता हारा ॥ २७॥ कृतघन सम नहि पापी कोई, लहै नही निज भक्ति जु सोई। कृती महामुनि तेरे दासा, कनक कामिनी त्यागी उदासा ॥२८॥ करण दंडि करणी सब त्यागें, तव तेरे गुन माहि जु लाग। कनक कामिनी तेरे नाही, तू विरकत जोगी जगमाही॥२९॥ कमलापति तू परगट नाथा, कमला भामा रूप न साथा। कमला तेरी परणती स्वामी, तू. परिणामी द्रव्य सुनामी ।। ३० ।। तो सम कमरलाधर नहि कोऊ, सर्वसुदायक तू हरि होऊ। तेरी कमला भिन्न न कोई, एक रूप एकातम होई ।। ३१ ।।
- छंद सालिनी - कालातीता कालहारी जु तू ही, कामातीता काल भासै समूही। विधा तोपैं वंचणी काल की है, शक्ति तेरै रासि जो माल की है ॥ ३२॥ सोई काली तत्व कल्लोलरूपा, तू है अब्धी ज्ञान वारि स्वरूपा। काली कोई वस्तु दूजी न और, शक्ती तेरी नाथ राजै जु चोर॥३३॥ काली हिंसा, रूप नाही जु होई, प्रांनी रक्षा भासका भूति सोई। काल कौलें, नाम काली सु जाते, क्रांती रूपा, सोई गौरी जु ता ।। ३४॥ तोकौं ध्यावें, कालकंठा सदा ही, तेरे नामै, काल कूटा सुधा ही। काई दूरा, तृहि है कास्यपीशा, नाथ पासा, तू हि तारै तपीशा ।। ३५॥