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________________ सदासुखदासजी, भूधरदासजी, बुधजनजी आदि अनेक कवि, विद्वानों द्वारा गद्यपन में ग्रन्थ रचना द्वारा सरस्वती के भण्डार में वृद्धि हुई थी, वहाँ ही समाज में सामान्यजन का रत्नत्रय निर्मल था. चारित्र उज्वल था, इतर जन राजा आदि तक उनकी चारित्रिक दृढ़ता के कायल थे, गाँव से लेकर नगर तक सर्वत्र वे सम्मान्य थे. प्रतिष्ठा प्राप्त थे। उनके प्रभाव से बिना उपदेश और प्रेरणा के ही इतर जन दयावान शाकाहारी थे। अध्यात्म बारहखड़ी उन ग्रंथ रत्नों में से एक है जो मुद्रण के इस युग में आज तक अमुद्रित, अप्रकाशित है। यह पहली बार जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है। कुछ वर्ष पूर्व तपस्वी सम्राट १०८ आचार्य श्री सन्मतिसागरजी महाराज एवं आर्यिका माता विजयमतिजी जब चातुर्मास प्रवास में जयपुर में ससंघ विराजमान थे तब चौकड़ी मोदीखाना स्थित छोटे दीवानजी के मन्दिर में इसका चतुर्विध संघ की उपस्थिति में नित्य अपराह्न पारायण हुआ था। आचार्यश्री एवं विदुषी माताश्री अपने श्रीमुख से पद्यों का अर्थ स्पष्ट करते थे एवं परस्पर चर्चा से उपस्थित जनसमुदाय पदों के अर्थ गाम्भीर्य को हृदयंगम करता था। सभी की उस समय से यह इच्छा थी कि यह ग्रन्थ रल जिनवाणी के उपासक सभी जनसमुदाय के लाभार्थ प्रकाशित होना चाहिए । उस समय से चली आयो इस भावना को मैंने डॉ. कमलचन्दजी सोगानो, संयोजक जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी को व्यक्त किया तो उन्होंने तत्काल संस्थान द्वारा प्रकाशित करना स्वीकार किया और यह अब पाठकों के सामने हैं। इस ग्रन्थ की प्रति डॉ. बीरसागर जैन, प्राध्यापक, केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ, देहली से प्राप्त हुई थी और वह ही इस प्रकाशन का आधार बन रही है। अत: डॉ. जैन विशेषतः धन्यवाद के पात्र हैं। प्रति में दो पद्य अपूर्ण हैं उन्हें अपूर्ण हो मुद्रित किया गया है। विज्ञजनों को अन्यत्र किसी प्रति में वे पूरे मिलें तो हमें सूचित करें। जयपुर ज्ञानचन्द बिल्टीवाला ९ मार्च, २००२
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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