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________________ अध्यात्म बारहखड़ी मेरे कारिज तू मन मित्र, होहु सुमन मिलि थिरचर मित्र । तव तू साचौ मेरौं मंत्रि, मोहि मिलावै जगपति यंत्रि॥ २५ ।। इह विधि समुझायो जिय मनां, ले एकांत भव्य नैं घना। मन मान्यौ जिय को उपदेस, लग्यौ चित्त चरणां जगतेस ।। २६ ।। इज्या है पूजा कौँ नाम, पूज्य पुरिष प्रभु अतिगुण धाम । इंद्रीजित जै मुनिवर धीर, तिनको तारक है वर वीर ।। २७॥ इंद्रीपति मन मनसुत काम, कामजीत जगजीत सुरांम । इच्छा पूरन आप अनिच्छ, निहकामी जगदीस प्रतिच्छ ।। २८ ।। - त्रोटक छंद - इह इंद्रीपत्ती हर देवपती, इह इंद्रिय जीत कहै सुजती। इंही इंद्रिपती सुत मान हरै, प्रभु इंद्रिय धारक पार करै।।२९ । नहि आप जु इंद्रिय धारक वै, प्रभु एक अनेक अपार फवै। वह सर्व इच्छा परिपूरण है, परमेसुर पाप जु चूरण है॥३०॥ तप होइ जु इच्छ निरोध किये, तपभाव बिना नहि दास लिये। इह अंक इकार कहयो प्रगटा, प्रगटै सव तूहि प्रभू अघटा ।। ३३ ।। इभपत्ति प्रपूजित लोक गुरं, सर्वाक्षर रूप सुरं अमरें। अजरं अकरं सुवरं सुपर, निजरूप प्रभासुर सारतरं ॥३२॥ - दोहा - इडा पिंगला सुषमना, नारी तीन जु होय। रहै सुषमना लागि कौं, रटै तोहि सुख सोय॥३३ ।। सोहं सोहं शब्द इह, सव जीवनि के होइ। सास उसासा सहज ही, विरला बृझै कोय॥३४॥ संसय विभ्रम रूप जो, महामोह बलवान। पारै तोसौं आंतिरौ, उपजावें अज्ञांन ॥ ३५॥ लागौ नादि जु काल तें, समुझ न दे निजरूप । भ्रमण कराव जगत मैं, दुख दे महा विरूप॥३६ ।।
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
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