________________
परिशिष्ट
ग्रन्थ में आये शुद्ध आत्मा के कतिपय नाम केवल राम, अनाम, हर (बंधन हरने वाला), हरी ( पराक्रम रूप), दिनकर देव (अज्ञान अन्धकार हरने वाला), गणनायक, जगभूप, बुध (प्रतिबोधक), विरंचि (विधिकर्ता), जिनवर, मदनजीत, जगजीत, अभिराम, रम्यरमण, भगवान, ज्ञानवान, रमार्कत ( स्वयं की शक्तियों के नाथ) चर, परम आल्हादक, सुरपति, क्षेत्राधीश, नरपति, आदीश, आदिपुरुष, संत, महंत, अनंत, अरिहंत, शुद्ध चेतना, आतमराम, अकाम, कामरूप (आनन्दमग्न), ... .. मतराम, सुंदर, सरस, विराम, विद्वान, महाराज, द्विजराज, भवनांव, क्षितिपालक, भयटालक, आखण्डल (एकछत्र स्वामी), क्षेत्रपाल (स्व-परक्षेत्र पालक), नटवरलाल (विमल भावों का नाटक करनेवाला), त्रिभंगी लाल (अस्ति, नास्ति, अवक्तव्य का अवभासक), काष्ण (सर्व भाव प्रकाशन करते हुए भी निजभाव का आकर्षक होने से कृष्ण), महारुद्र (कर्म शत्रु का नाशक होने से), अमर, कर्णनाभि (मकड़ी की भाँति पृ. २२-२३ पर 'आप ही मैं खेले तार सौं बहुरि सकौंचे सार' (१९१७), अवितर्क, ऊहापोह वितीत, देव (नित्य गुणों में रमने से कवि करे क्रीड भव सिंधु मैं तातें जीव हु देव' तक कह देते हैं (५६/५) ।)
कठिन शब्दावली
पृ. २२.२३
फहा - फँसा असम : कोई बराबर नहीं
अब्दा - जल महासम - सबके घराबर अकेला अतनु प्रहारी - कामनाशक अलेसी लेश्या रहित
भेवा - भेद. रहस्य
सुअनाश्री . किसी के आश्रय नहीं अभू अजन्मा
अविगत - अविनाशी स्वभ : स्वयं से पयायों का |
प. २५ जनजाश्री - निज वैभव में उत्पाद उत्पाद
| भोगीसा - शेषनाग, धरणेन्द्र अरज ज्ञानावरणादि रक्षित १२७ अछेप : बाधा रहित विरज - विरक्त
विमोष - चोरी रहित अरुज - निरोग
अषोभ क्षोभ रहित