________________
अध्यात्म बारहखड़ी
नायक विश्वतनौं तू एका, विजितांतक विरती सुविवेका। तू हि विश्ववित विश्वजिती तू, विभयो विरजो जगतपती तू॥ २१ ॥ तू हि विरागी है जु विशेषा, विघ्न विनाशक है जु अशेषा। देव विनायक नायक तृ. ही, विशेषज्ञ अति विज्ञ प्रभू ही।।२२।। तू विकलंक विमुक्तात्मा है, विश्वभूति अति ज्ञानात्मा है। विश्व चक्षु तू विश्वजनेता, तू हि विश्वभूतित्व प्रणेता॥ २३ ॥ विनु तू हि अति जिश्नु जिनेशा, सर्वग सरवज्ञो सुमहेशा। ब्रह्म सुविद्यादायक तू ही, विश्व विलोचन जगत प्रभू ही॥२४॥ विश्वयोनि निरयोनि गुसांई, विश्व विलोकी अतुल असांई। परम विवेकी ध्यावहि तोही, देहु विधीश्वर सुविधि जु मोही ।। २५ ।। विधि प्रेरक तू अविधि विडारे, विधि अविधी तोकौं न निहारे। वियदाकार अपार जु तू ही, शुद्ध विहाय समो जु अदूही ॥ २६ ॥ विभू दूसरौ और न तो सौ, भौंदू जन दूजों नहि मोसौ। तोहि विहाय लग्यौ भ्रम जारा, ध्यायो नाही जगत अधारा ।। २७॥ तो हि विहावै नित्य जु यों हि, भाव विभाव गहै नहि क्यों हो। विश्व कर्म से न्यारा तू ही, विश्वमूरती तू हि प्रभू ही ॥२८॥ विश्व जु कर्मा तू हि कहावै, करम करम की रीति वतावै। वस विभा जा मांहि अनंता, तू हि विभाधर विश्व लखंता ।। २९ ॥ विविध प्रकार करें सुर पूजा, बिवुध प्रपूजित तृ. जग दूजा । विधुताशेष निबंधन तू ही, संसारार्णव तार प्रभू ही॥३०॥ तू वितिरिक्त परम सुख भाया, नित्य विमुक्त विमुक्ति प्रदाया। विसनीरण तु विश्व प्रमाणा, पुरुष प्रमाण पुराण सुजाणा ।। ३१ ॥ वितरण दांन तनौं है नामा, तू दानी दानेश्वर रामा । विरज करे रजरहित विमोही, अरज सुने भय हरि निरमोही ॥३२॥