SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ सवैया देस त्यागि कोस त्यागि, रोस त्यागि दोस त्यागि, तोहि मैं रहौं जु लागि, तेरौई जु होय जी । छांडौं माया मोह सब खंडों को सव शुद्ध रूप देखूं तेरी ध्यांन मांहि जोय जी । देह तैं जु नेह छांडि, कुटम सनेह छांडि, तोही तैं सनेह करि छांडों दोष दोय जी । शुभ अशुभ नाथ त्यागि तेरी गर्छौ साथ, - ३१ अध्यात्म बारहखड़ी — तोही को आराध देव तू है एक कोय जी ।। ६५ ।। सोरठा द्वैताद्वैत न कोय, तू अवाच्य द्वै रूप है। दैव अतुल गति होय, दैत्य देव सव ही भजें ॥ ६६ ॥ नहीं दैन्यता नाथ, पीरें जार्कों कवह जाको पकरै हाथ, तू वडहाथ अनाथ द्वै नहि तोमैं दोष, द्वै अधिका दस तप कहै । देहि मुल्यों को मोख, कहै परीसह बीस द्वै ॥ ६८ ॥ 7 भी । जी ॥ ६७ ॥ द्वै अधिका प्रभु तीस लक्षण धर वड भाग नर । तोहि भजैं जगदीस तू ईसुर श्रीसुर प्रभू ।। ६९ ।। द्वै अधिका चालीस नांम कर्म की प्रकति हैं। तो मैं एक न इस P प्रकति परें परवीन तू ॥ ७० ॥ द्वै अधिका पच्चास देवल तेरे नाथजी । नंदीसुर जु विभास, दीप आठमों धारई ॥ ७१ ॥ द्वै अधिक प्रभु साठि मारगणा भासें तु ही । तू है आगम पाठि, अपठ पाठ अवनीस तू ॥ ७२ ॥
SR No.090006
Book TitleAdhyatma Barakhadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal, Gyanchand Biltiwala
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages314
LanguageDhundhaari
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy