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अध्याता बारहस्नड़ी.
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गैक रूव एक रूव णोकमा ण कोई होड़,
आनंद को सागर उजागर विलास है। णौका सम तारक तू णंदौ जगदीस धीस, __ण: पयास सव्व अंक भासक सुपास है।।२२।।
... दोहा - णमियामर णियरा धुरू, गुरू तिहारि भूति।
सत्ता शक्ति रमा शिवा, सो दौलति विभूति ॥ २३ ॥ इति णकार समात्तं। आगें तकार का व्याख्यान कर है।
- भोक . तत्त्वं तथ्य प्रणेतारं, तारकं ताप हारक। त्रिगुणं तीरदं तुष्टं, तूप हावली युतं॥१॥ तेजोरासिं महाशांतं चैगुण्यगुणितं विभुं। तोष रोषादि निर्मुक्तं, संतोषामृत सागरं ॥२॥ तौर्य त्रिकान्वितं धीर, तंत्र मंत्रादि दृरगं। तः प्रकासं चिदाकासं, वंदे देवं महोदयं ।। ३ ।।
– सारठा - त कहिये सिद्धांत, मांहि चित्त का नाम है। तू परमेश्वर शांत, चित्त वाक तनु रहित तू।।४।। त भाष्यो श्रुति माहि, नाम क्रोध को ठीक है। तेरे क्रोध सुनाहि, मान न माया लोभ है।॥५॥ नांव पूंछ को ख्यात, त कहिये आगम बिषै। सींग पूंछ विनु तात, भगति रहित नर बोर हैं॥६॥ तमहर तपहर देव, तपधर गुणधर धीर तू। तपसी धारै सेव, है अछेव अतिभेव तू॥७॥ इहै तमासौ नाथ, जड़ मैं जीव जु बांधिया । जव छुट्टै वडहाथ, तू हिं छुडा करि कृपा॥८॥