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अध्यात्म बारहखड़ी
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- भाक :णकाराक्षर धातारं, ज्ञानिनं परमोदयं । सानंदं परमानंद, वंदे सर्वेश्वरं गुरुं ॥१॥
.- सोरठा - ण कहिये श्रुति माहि, ज्ञान नांव परगट प्रभू । तो विनु ज्ञान सु नाहि, ज्ञान मांहि तू ही गुरू॥२॥ थुति को नाम प्रसिद्ध, कहैं णकार सुपंडिता। थुति तेरी गुण वृद्ध, करें देव नरपति मुनी ॥३॥
- गाथा छंद -
णमो णमो प्रभु तोकौं, णय परमाण णिखेप हु ण पावें। गगादिक रिपु मोकौं, दुख दे तो ध्याइ यां जावै ।।४। स्टैं णमोकारा जे णांवें, तोकौं स्व सीस मतिवांना। अति गुण गण भारा जे निरविध ना होहि भगवांना ।। ५ ।। णाण सरूवा तू ही, गाणी णादा सुणागरा राया। णाणा गुण जु समूही, णाणा रूवा जु सुखदाया॥६॥ णगिंदा जु सुरिंदा, चंदा सूरा जपैं हि सब तोकौं। ध्यानै तोहि मुनिंदा, भवसागर तारि प्रभु मोकौं ।।७।। णाव तिहारौ नामा, खेवट तू ही अनंत ते तारे । हम हूं तारि सुरामा, रागद्वेषादिकां टार॥८॥
- दोहा - णिय भावें जो गमि रहइ, अन्य विभाव मुएइ। सो पाबड़ णिय धम्मद्विइ, सयल विभाव चएइ॥९॥ णिच्चाणिच्च सरूंव मुणि, सुद्ध बुद्ध अविरुद्ध। णियमादि सु उरधारि जिय, जपि जग गुर अणिरुद्ध ॥१०॥ णियडउ आवइ मरण जिय, णियणाहें लवलाव । छंडिवि सयल वियार तुह, उरथरि भवदधि णाय ॥ ११ ॥