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अध्यात्म बारहखड़ी
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- दोहा - ड: कहिये मात्रांतिकी, तू सब मात्रा मांहि।
तेरी सी मात्रा प्रभू, तीन लोक मैं नांहि ।। ३९ ॥ अथ द्वादश मात्रा एक कवित्त मैं ।
- सवैया ३१ - डर नाहि तेरै कोऊ डारे रागदोष दोऊ,
डिगर न कभी नाथ डीलां अति पुष्ट है। डुल्यो नाहि डुलै नांहि, डूंगर ते अति ऊंच ___ झान माह तेर। देश हि इष्ट है। . डैम नाहि वाजें तैर वाजे बाजें जू असंखि,
डोरि मांहि लोक सव तो सौ तू हि सिष्ट है। डौरि नाहि तेरै कोऊ डौरि हरै डोरिनि की इंडवत जोग्य तू ही डः प्रकास तुष्ट है॥४०॥
- दोहा .. डलाजु माटी को जिसौ, तेसी भव की भूति।
तेरी लक्ष्मी सास्वती, सो दौलत्ति विभूति ।। ४१ ॥ इति डकार संपूर्ण। आगै ढकार का व्याख्यान कर है।
-- भोक - द्वकाराक्षर कर्तारं, ज्ञान रूपं जगद्गुरूं । लोकालोक प्रज्ञातारं, देवं देवाधिपं विभुं ॥१॥
- अग्लि छंद - ढ कहिये श्रुति मांहि मूढ़ का नाम है,
ते नर मूढ अयांन भ® नहि राम है। ढ कहिये ध्वनि नाम ध्वनि जु तेरी सही,
तेरी धुनि सुनि पाप नास है सकल ही ॥२॥