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अध्यात्म बारहखड़ी
टूकटूक करि डारें, सकल विभाव दास, टेक तजि टैंणी तजि तिरें भव कूप हैं। टोली नां अभावनि की, बैठो लोक टॉकरें जु, टंकवतकीरण तू टः प्रकास भूप है ।। ४२ ।।
दोहा
टग नहि तेरे और को, ज्ञान रूप टग सोय । सोई कमला लच्छिमी, संपति दौलति होय ॥ ४३ ॥ इति टकार संपूर्ण । आर्गै ठकार का व्याख्यान करें है ।
श्लोक
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ठकाराक्षर कर्त्तारं दातारं धर्म शुक्लयोः । मोक्षमार्गस्य, वंदे तत्पद
नेतारं
लब्धये ॥ १ ॥
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- दाहा
ठयो न काहू काल जो, नित्य निरंजन देव । ठटै ठाट निज भाव को, सो अनंत अति भेव ॥ २ ॥
ठई प्रतीति मुनीनिक, मुनि ध्यांवें सक नांहि । ठई न काहू की करी, तुव महिमा जगमांहि ॥ ३ ॥
ठग मोहादि अनंत है, तिन हि ठगैं मुनिराय । ते तेरे घुर चैन सौं, आवें भ्रांति गुमाय् ॥ ४ ॥
तुव भक्ती बिनु ए ठगा, ठगे जांहि नहि नाथ । तू ठगहर, दुखहर प्रभू, दीनानाथ अनाथ ॥ ५ ॥
ठग विद्या सर्व त्यागि के, निह प्रपंच हैं कोय । सोई तोकौं पावई, दास अवंचक होय ॥ ६ ॥
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सीस ।
मोहि ठग्यो मोहादिकनि, डारि ठगोरी इहै ठगोरी भ्रांति है, दारौ जगत अधीस ॥ ७ ॥