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अध्यात्म बारहखड़ी
मोकों ॥ २४ ॥
टीसि न तेरे रीसि न कोई, टींटि करम की टार सोई । रूखा टुकरा पाय मनिंदा करें रावरौ ध्यांन जिनंदा ॥ २३ ॥ हैं टुटेक जीवन जयराया, टुक सी लोकनि की इह माया । तामँ राचि विसारयाँ तोकौं, तातें धृक धृक्क है टूटपूंज्यो इह जीव गुसांई, पूंजी दावी करमनि सांई । तू हि वतावै पूंजी देवा, हरै रोर अति घोर अछेवा ॥ २५ ॥ टूटि गये भ्रम भाव सबै ही, दासनि तैं मद मोह दवै ही । दास करौ और न कछु जाचें, त्यागि कलपना तोसौं राचै ।। २६ ।।
छंद त्रिभंगी
दूका ले रुखा, किस हि न दूखा, प्यास जु भूखा जीति प्रभू । करि टूक जु टूका मोह धुरूका, सबद गुरू का धारि विभू ॥ तजि टूम जु दामा, क्रोध जु कामा गृह धन धामा, तोहि भजैं ।
तेई शिव पांवें, कर्म नसांवैं, आतम भांवें भ्रमण तजैं ॥ २७ ॥
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तेरी इह देवा, सब सुख देवा, वातैं नहि टेढी, तू गुन सेढी, टेढे मद मोहा, राग जु दोहा,
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नहि टेक जु देवा, तू अति देवा, करहि ज़ु सेवा, भव्यजना । एक जु एवा गुन जु घना ।। पदमा वेढी, इक तोसौं । करहि जु द्रोहा, प्रभू मोसौं ॥ २८ ॥
सोरठा
मारयो टेरि जु टेरि, टांग्यो इनि अति दुख दियौ । कूंकौं टेरि जु टेरि, राव हमारौ न्याय करि ॥ २९ ॥ एक देव की तृ हि, और टेव की नांहि को । रागादिक जु समूहि, टेढे तैं सूधे किये ॥ ३० ॥ टैंणी तेरे नाहि, टैंणि उतारै मोह की । स्वांमी तेरै मांहिं, गुन अनंत अति शक्ति है ॥ ३१ ॥ दो कहिये श्रुति मांहि नांव महेश्वर देव कौ । और सु दूजौ नांहि एक महेश्वर तू सही ॥ ३२ ॥