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आचार्य सोमकोति एवं ब्रह्म यशोधर
पुलिक ए सहित ते राउ श्री गुरु केरा पगि पड्यु ए । लिक ए कहि गुरु स्वामि दीक्षा देउ ताह्म राउनिए ।। ४४१ ।। भूपतीए पाठ समत मारदा बौक्षा लेइए । राणीए सई तिहां पाठ स्लीधी दीक्षा जननीए । ४४२ ।। क्षलक ए षुडीय समेत प्रणमीय पायज गुरु तणाए । मांगीए दीक्षा सार गुरु तूठउ तियां दीइए ।। ४४३ ।। श्री गुरु ए बिहार करंति पुहुतां भवीयां बोधिवा ए। ते बहूए तीणि ठामि लेई दीक्षा तव रह्या ए ॥ ४४४ ॥ अभयरुचीए मुनियर राइ अभयमती माशा हुई ए। ते वेहूए मणसण लेवि पाष दीहाडा पालोउं ए ।। ४४५ 11 सातमइए स्वर्ग पहूत इंद्र प्रतीद्रंज ते हूया ए। देवीए बृदज माहि सार सौख्य प्रति भोगविए ।। ४४६ ।। सुदत्त ए मुनिवर राउ सोलमइ स्वर्ग ज ते गऊ ए । किल्याण ए मित्रज प्रादि घरीय करी में मुनि सोहू ए ॥ ४४७ ।। पुहुता ए तेहज स्वगि पुग्यमानि प्रा पापरिणए । योगीए सघले साम मिथ्यात हिंसा छांडी करीए ।। ४४८ ।। पुहृता ए तेह सु ठाम कर्म मानि बली प्रागणिए । दयानिधिए एहज रास पढ़ह गुणि चे सांभलिए ॥ ४४६ ।। नवनिधिए मंदिर तास कामधेन तस प्रांगणिए । पापहए तरणउ विनाश धर्मतरूयर बाघि सदाए ।। ४५० ॥ कुबुधए केरऽ नास बुधि रूडी सदा उपजइए । जांद्रए सूरज भेरु महीपाए
॥ ४५१ 11 तां रहुए एहज रास राउ यसोधर केरडु ए !