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________________ ५४ आचार्य सोमकीति एवं ब्रह्म शाबर ती ितिहां ते पाठथ्युए श्रन्यु सभा मझार तु तेह दर्शन राउ हरषीउए, जोऊ कर्म विचार ।। २१५ ।। उए, स्वानज पालण काज तु । लुड मसारणी न हुं पुर्ण गरहीनि दीउए, संतोष नरराज तु ॥ २१६ ॥ राणी रमतो रंग तु । एक दिवस मिखीजं ए, बिठी श्लीया इतईए, कुत्र तरिण उत्संगितु ।। २१७ ।। जाती समरि जाणीउए, तब पनि उपनी रीस तु । नख रेहणीयां सीस तु । २१३ ।। कोधि गर्मशिहि उडीउए राणी रीसि मुकीजए, निज भूषानु घाउ तु । पामीय मूरखा ते पड़ए, जिहां विद्धि राउ तु ।। २१६ ।। I तव रांइ एस भव्य ए. लिए लिइ ए सखि जाम तु । स्वानि संकल प्रोटि करे, ग्रहीत कंटि ताम तु ॥ २२७ ॥ तव रांइ माथि हव्यु ए, रमतां सोग स्वान तु । तिशि बाड़ ते स्थान तशी जीव हनी हुई हारिण तु ।। २२१ ।। से पटियां दोइ मेल करे, रांइ विलापज कीध तु I वेडी सवि जन श्रापणाए, इसी सीरवामणि दीधतु ।। २२२ ।। संस्कार गरि देउ, देउ सोवह दान | गंगा अस्थिज पाठवुए, मोर तांनि स्वान वृ ।। २२३ ।। स्वगि जई सुख भोगविए, जिम बडीयाई तात तु । वांट गइथि जीवडिए, मितवमुरणीय बात तु ।। २२४ ।। ती ते सहइ की उंए, तब दोइ छडि सरीर तु । गिरिहि सुलि भीमवनि, गंगा केरि तौर तु ।। २२५ ।। मोर एवं स्वान मार कर सर्व एवं सेहलि होना मोर मरी निहां उपत कालु मोटु पतु | स्वान बली सेल हुए भोगवतु निज पाप तु ॥ २२६ ।। एक बार जब दोइ सिल्याए, सेहलि साम्हु नाग तु । सापि मेहलु फरिण हृयुए, आवर नहीं कोई लाग तु ।। २२७ ।।
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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