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यशोधर रास
फूल बीरमइ नारि, वेश रहित घरणि पडीए ।
सूरछ मसि तिणी वारि, हसीय करी तवमि भए । न । १५६ जोउ नारि विचार, समुद्र तर्षा विद जोयताए ।
नारीय चरित नपार सकिल घाइ ग्राहीए || न । १६० ॥
जीय जीय जीय भरांति, फूल बौटिम दूवीए । ततक्षण तव ते उठीयए ।। न ।। १६१ ।
मूरछी घरणि पति,
डुं पण नासीय जाम, सभा महारज भावीउए ।
विउ सिंघाससिताम, नारे सूया राइ साही हाथि ।। १६२ ।।
वस्तु
जाम बिठउ जाम बिउ सभा पूरेवि
जिहां पुरा सकल शास्त्र लेई चली उपास प्राथ्यु |
वाचंतु सिद्धांत मझट्ट, मनि ते नव भाव्यु |
तव माता मुझ पालखी बिसी यात्री जाम ।
सभा सहित उठी करी, विउ करीय मरणाम || १६३ ।। अथ ढाल छठो
माता से वार्ता करना
संठी मुझ देख करि, माता दिवई प्रातीस |
पुत्र परिवार सजन सह हीडोलिडारे जीव यो कोड़ि बरीस ।। १६४ ।।
माता तब हूं पुढील कुशल बिहाणी रात |
शिर धूणी तिमि भरणउही, ही माता मसुदा । ९६५ ।।
माता सुमति इम भरिए, कहु बरस केहा काज |
तर्वाम माता सु कयुं ही. सोयराइड लाघो लु श्राज ।। १६६ ।।
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बनि जाई दीक्षा लेजं, देईय बेटा राज ।
घरि रहुं तु उपजि, होडोलिडारे जरिए मदिमुझ लाज ।। १६७ ।।
माता मति हम भाणि संभलि तु मुझ बात 1
पूजिसु गोत्रिज प्रापणी, सोयण्डव वारसि तात ।। १६८ ।।