SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचार्य सोमकीर्ति तथा वहां उसने सभी विद्यानों में पारंगता प्राप्त की। काव्य, अलंकार, तर्कशास्त्र, सिद्धांत, नाटक, ज्योतिप, वैद्यक, प्रादि सभी शास्त्रों का अध्ययन किया 1 यही नहीं संगीत, नृत्य आदि में प्रवीणता प्राप्त की। उपाध्याय को इस उपलक्ष में एक लाख दीनार भेंट की तथा अपना पूरा प्राभूषण उतार करके दिया । यौवन प्राप्त करते ही विवाह के प्रस्ताब पाने लगे। एक दिन कैशक राजा के यहां से विवाह का प्रस्ताव लेकर एक दूत पाया। राजा ने विवाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तथा अपने पुत्र का विवाह कर दिया । विवाह के उपलक्ष में नगर को सजाया गया । बिन्दीरियां निकाली गयी । तेल चढ़ाया गया । तथा गीत गाये गये । उद्यान में जाकर विवाह किया गया । जब वधु का रूप देखा गया तो सभी प्रसन्न हो गये । वधु को लेकर राजमहल में गये और सब सुख से रहने लगे 1 बहुत वर्षों तक राज्य सुख भोगने के पश्चात् राजा यशोध अपने पुत्र यशोधर को राज्य देकर स्वयं ने जिन दीक्षा धारण करली । यशोधर एवं रानी यशोवती राज्य करने लगे । जीवन प्रानन्द से बीतने लगा । एक तो योवन, फिर सुन्दरता, राज्य वैभव एवं परस्पर में घना प्रेम, सब कुछ दोनों के पास था। इसलिए वैभव में दिन व्यतीत होने लगे । एक रात्रि को जब राजा-रानी एक पलंग पर सो रहे थे । अर्धरावि का समय आते ही रानी अपने पलंग से उठी और पूरे प्रभूषण पहिन कर महलों से नीचे चलने लगी। राजा को जब जाग हुई तो वह भी तलवार लेकर रानी के पीछे-पीछे चलने लगा। राजा ने देखा कि रति के समान रानी एक कोड़ी के पास गयी तथा उसके चरण पकड़ कर जगाने लगी । कोही के हाथ-पांव गल गये थे। शरीर से दुर्गन्ध पा रही थी। उस कोढी ने रानी को देर से प्राने पर उसे खूब मारा लेकिन रानी ने अरु भी नहीं कहा और देर से पाने के लिए क्षमा मांगने लगी । राजा ने जब यह सब अपनी प्रांखों से देखा तो क्रोधित होकर उसे तलवार से मारने लगा लेकिन फिर सम्भल गया । और वापिस अपने महल में जाकर सो गया । जिस रानी के साथ जीवन बिताने में राजा को प्रानन्दानुभूति होती थी अब उसे वह जहर के समान लगने लगी। प्रातः काल होने पर जब उसकी माता जिन पूजा प्रादि से निवृत होकर राजमहल में पायी तो राजा ने रात्रि स्वान की बात कही तथा स्वप्न की भयंकरता को देखते उसने वैराग्य लेने की इच्छा प्रगट की । लेकिन माता ने उसे कायरता बतलाया तथा कहा कि कुलदेवी के मागे बलि चढ़ाने से सारे उपद्रव दूर हो सकते हैं। लेकिन यशोधर ने किसी भी जीव की बलि देने से साफ इन्कार कर दिया । माता
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy