SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्रह्म यशोधर क पद सुरण रे सारधी तहि कहुरे भाप । अपर जीवके रु प्रनंत पाप ।। बोलि ।। ५ ॥ सुख बइठी राजिल जोइ रे आली।। पसूडो बंधन छोडी ग3 रथ वाली ।। बोलि ।। ६ ॥ पूरब प्रीतडीयां स्वामी मन पवा । दुर्जन ना बोल ती मन थी टालु || बोलि ।। ७ ।। राजिलि नेमि पामी जाई गिरनार । बहा रे यसोपर कहि संसार !। बोलि ॥ ८ ॥ राग कालेह चेतु लोई २” भिर म कह दया दान जे उड़य प्रारोही सिरपुर जामि सोई ।चेतु।१।। चंचल धन तनु चंचल जाणु योवन चंचल माणु रे । वीज तेज जिम क्षण एक दीसि ही मष्टि अस्थिर प्राणु रे ॥चेतु।।२।। बंधव पुत्र कलिज कहि ना पितर माई परिवारा रे अबंरि अभ्र पटज जिम दीसि भाथिर एह संसारा रे ।।चेतु।।३॥ लक राह जे रावण राणु नस्ल नहुष परिमाणु रे । प्रवर राइ घर कोई न रहीया हूया होसि जे जाणु रे ।।चेत।। ४१ ज्ञान दृष्टि ता जोउ विघारी परिहस धन परनारी रे। ब्रह्म यशोधर ए गुण दासि तेहनि समरथ सरणि राखि रे ॥५॥ - -
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy