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२.०६
आचार्य सोमकीर्ति एवं ब्रह्म यशोधर
(३) प्रभु नेमकुमार सार जिणि संयम धरउ | मुमिकुमार मया समरंगणि वरच | प्रमुमिकुमार तबीय जिरिए राजलि राणी प्रभु नेमिकुमार कर्म आठ अंति प्राणी | प्रणमत जनमि प्राठि प्रहर मुगति नारि जेह चित वसी ॥ ब्रह्म यसोधर इम कहि तेह पाप पंक जाइलसी ॥ १ ॥
(४)
करु धर्म एक सार वार मम लाट प्राणी । वली समरु नवकार भाव ते मन माहि माणी । सेवु अरिहंत आदि बाद भांति भव केरा । दया करो दि दान ज्ञान पामु बहुतेरा ।
मन बच काया वसि करी आपण इम तारीइ ।
ब्रह्म यशोधर इम भ जिम नरम तां दुख वारी ॥ १ ॥
मुहुवि परगट पास जास वासुग फरिए सोहि । कम उतारथ नाव देव मानव मन मोहि । डाकिरण शाकिरिण भूत वेगि वितर भय पालि | अतिसय अधिक अपार मनहुवंछित वर प्रालि । सेवृज स्वाम मूरति सकल अकल रूप श्रानंद करि । ब्रह्म यशोमर इम भूणि ते सेवता स्वामि दालित हरि ||२||
(५)
राग केदार
पड तोरणि परिहरी, राममि जीणी परिही । परिहरि विषयाकेरी वेलडी जी ॥ १ ॥ मयत जिरिंग मोडीय, चाल्यु रथडु मोडीय | सोत्रीय मोह माया अंगि झवंता जी ॥ २ ॥
ग्रसेन मनवा लिहो तेहज मन नवि वालि हो । बालि हो मनहु ए मुगति भरणी जी ॥ ३ ॥ सुर तर मलीया केवडा नेमि गुण गाइ केवडा । केवडा गिरिनारी उत्सव करिजी ॥ ४॥