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________________ वैराग्य गीत १६७ वैराग्य गीत राग धन्यासी संसार सागर एह गहन छिरे भमिउ भमिउ चुगि जाए जिणवर रे ।। परमपुरुप एक नऊ लष्यु रे जिम छटु नरबाण स्वामी रे ।। विमुधन तारण तु वडली रे, तारु तारु गहन संसार जिणबर रे ।। समरथ नाणी निमि प्रणसरयू रे, जनम मरण दुलटाल स्वामी रे समरथ ॥१॥ लाथ मी ति: पंवारे वसीउ वसीउ बार बहुत रे । जिरणवर रे। धरम न की एक दया धरीरे । पाप पटल पंकि पूत, स्वामी बिणबर रे ।। २ ॥ असन परिणयमि प्रतिघणां रे । कोषी कोघी जीवविणास जिणवर रे । पर नारीय लंपट पकिरे पाम्य पाम्पु नरयावास स्वामी जिणवर रे ।। ३ ॥ तृष्णा नदीइ प्राणी ताणीउ रे कीघा क्रीघा प्रतिषणा द्रोह, जिगावर रे । च्यारे कषाय जीव गलि धयु रे रात्यु राल्यु दुरगति षोह, स्वामी जिगनर रे। ४ । पांचे इन्द्रीए प्राणी परिभव्यु रे मयण धूतारुवली माहि, जिणवर रे । पंथि पलान्यु ए पातिग तणि ए। समरभ वाहरि नुघाइ, स्वामी जिरावर रे ।। ५ ।। पुन्य पसां इमि तु प्रामीउ रे, सफल जनम हउ पाज, जिरावर रे। ब्रह्म यसोधर हरषि इम कहि रे, प्रवर नही मुझ काज, स्वामी रे जिणवर रे ॥ ६ ॥ इति वैराग्य गीत
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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