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________________ TE, आचार्य सोमकीत एवं ब्रह्म यशोधर करसे थे । वहां चारों ओर बीर एवं योद्धा दिखलाई देते थे । सज्जनों के अतिरिक्ष दुर्जनों का तो वहां नाम भी नहीं था। कवि ने द्वारिका का वर्णन निम्न प्रकार किया हैनगर द्वारिका देश मभार, जाणे इन्द्रपुरी अवतार । बार ओमरण ते फिरतुवसि, ते देखी जन मन उलसि ।।११।। नव खण तेर खरणा प्रासाद, टह अंणि सम लागु बाद । कोटीधज तिहां कहीइ घग्गा, रत्ल हेम हीरे नहीं मरा ।।१२।। याचक जननि देइ दान, न हीयष्टि हरष नहीं अभिमान । सूर सुभट एक दीसि घणा, सज्जन लोक नही दुर्जणा ।।१३।। जिण भवने धज वड भरहरि, शिखर स्वर्ग सुवातज करि । हेम मूरप्ति पोकी परिमापप, एके रत्न अमू लिक जाण || १४|| द्वारिका नगरी के राजा थे श्रीकृष्ण जी जो पूगिामा के चन्द्रमा के समान मन्दर थे 1 बे छप्पन करोड़ यादवों के प्रधिपति थे। इन्हीं के बड़े भाई थे बलिभद् । स्थणं के समान जिनका शरीर था। जो हाथी रूपी शनों के लिए सिंह थे तथा हल जिनका आयुध था। रेवती चनको पटरानी थी । बड़े-बड़े वीर योद्धा उनके सेवक थे। वे गुणों के भण्डार तथा सत्यव्रती एवं निर्मल-चरित्र के धारण करने वाले थे दूहा तस बंधव अति रूयड रोहिण जेहनी मात । बलिभद्र नामि जागयो, वसुदेव ते हनु तात ||२|| कनक वरणं सोहि जिसु, सत्य शील तनुवास । हेमघार घर सि मा, ईहरण पूरि प्रास ।।२६॥ प्ररीया मद गज केशरी, हल प्रायुध कन्सिार । सुदृड सुभट से वि सदा, गिरुउ गुणह मंडार |॥३०॥ गटराणी तस रेवती, सील सिरोमणि देह । धर्म धुरा झालि सदा, पति अविहद नह ॥३१॥ उन दिनों नेमिनाथ का बिहार भी उपर ही हुआ। द्वारिका की प्रजा ने नेमिनाथ का स्वागत किया। भगवान श्रीकृष्णा, बलभद्र प्रादि सभी उनकी वंदना के लिए उनकी सभागृह में पहुंचे । बलभद्र ने जब द्वारिका नगरी के बारे में प्रश्न पूछा तो नेमिनाथ ने उसका निम्न शान्दों में उत्तर दिया--
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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