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ब्रह्म यशोधर
ब्रह्म पशोधर १६ वी शताब्दि के कवि थे । 'भट्टारक सोमकीति के शिष्य एवं भट्टारक यक्षाःकोलि के प्रशिष्य भ. विजन सेन को इन्होंने अपना गुरु माना है जिससे यह स्पष्ट है कि इन्होंने दोनों का ही शासनकाल देखा था। पौर यह भी संभव है कि इन्हें अपने प्रारम्भिक जीवन में १० सोमकीत्ति के भी पास रहने का सुअवसर मिला हो क्योंकि कुछ पदों में इन्होंने सोमकीति भट्रारक को भी अपने गुरु के रूप में स्मरण किया है ।
भट्टारक सोमकीत्ति को परम्परा के अतिरिक्त, इन्होंने भट्टारक मलकीति की आम्नाय में होने वाले भट्टारक विजयकोत्ति का भी गुरु के रूप में स्मरण किया है और अपने गुरु की प्रशंसा में एक गीत भी लिखा है। इससे यह स्पष्ट है कि ब्रह्म प्रशोधर सभी भट्टारकां के पास जाया करते थे और उनके च सालों में बैठ कर साहित्य साधना किया करते थे। जन्म
ब्रह्म यशोधर का जन्म कहां हुआ था। कौन इनके माता पिता थे, कितनी प्रायु में इन्होंने ब्रह्मचारी पद प्राप्त किया लथा कितने समय तक वे साहित्य साधना करते रहे इन प्रश्नों का उत्तर देना कठिन है क्योंकि उन्होंने अपनी कृनियों में इस सम्बन्ध में कोई प्रकाश नहीं डाला। साधु बनने के पश्चात् गृहस्थावस्था का सम्बन्ध बतलाना शास्त्र सम्मत नहीं माना जाता इसी दृष्टि में ब्रह्म यशोधर ने भी अपना कोई परिचय नहीं दिया। लेकिन अपनी दो रचनायों में रचनाकाल दिया है जिनमें नेमिनाथ गीत में संवत् १५८१ एवं बलिभद्र चुपई में संवत् १५८५ दिया
1. श्री रामसेन अनमि हमा, यसकीरति गुरु जाणि ।
श्री विजन पदि थापीया, महिमा मेर समान
तास सख्य इस उच्चरि, ब्रह्म यशोधर जेह् ।। १६७ ।। 2. श्री सोमकीति गुरु पाट धराधर सोल कला जिमु चंद्र रे ।
ब्रह्म यशोधर इणी परि दीनवी श्री मंध करि पाणंदूरे ।। ७ ।। 3. श्री काष्ठा संघ कुल तिलु रे, यती सिरोमणि सार ।
श्री विजय कीरति गिरुउ गणघर श्री संध करि जयकार ॥ ४ ॥