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________________ १५६ कवि प्रशस्ति भाचार्य सोमकोति एवं ब्रह्म यशोधर ग्रह निधि करि दया धर्म तु दान देय मनि रलीए । त्रिभुवन माह जयकार तु, जस बोलि सहजलीए ।। ३० । सोल धनुष तस देह तु. ऊंचा रामदेव कही ए । सतर सहल वृष प्रायु तु, तेह परमारण कही ए ।। ३१ ।। एतला मार्गह सविचार तु श्रीराम प्रति बली ए । यार पदारथ सार सु. साध्या निरमला ए ।। ३२ ।। ए रामायण ग्रंथ तु एहूनु पार नहीं ए । हूं मानव मति हीरा तु, संखेपि गीत कहीं ए ।। ३३ ।। विद्वांस जे नर होइ तु, विस्तार ने ऋरि ए । ए रास भास सुवितु, मुझ पर दया धरु ए ।। २४ ।। अक्षर मात्र हुबि तु पद छंद गा चूक ए । सरसिति सामिण देवि तु, अपराध मुक्त मूक ए ।। ३५ ।। श्री ब्रह्मचार जिखदास तु परसाद तेह तो ए 1 मनतिफल होइ तु, बोलीइ किस्यु घणु ए ।। ३६ ।। गुणकीरति कृत रास तु विस्तार मनि रखी ए । बाई श्री ज्ञानदास तु पुण्यमती निम्मली ए ।। ३७ ।। गावउरली रंगि रास तु, पावउ तु, पावउ रिद्धि वृद्धिए । मनवांछित फल होइ तु संपजि नव निधिए ।। ३८ ।। इति श्री रामसीतारास समाप्तः ॥ गटका --- पृष्ठ संख्या ६५ से ६१
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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