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________________ प्राचार्य सोमकाति एवं ब्रह्म यशोधर जैन कवि जैनेतर कवि १. प्राचार्य सोमकीति सं. १५१८ १. गुरुनानक सं. १५२६-१५९६ २. कनक ::३८ . कीरमास .५.७५. से पूर्व ३. उपाध्याय ज्ञान सागर सं १५३१ ३. चरगवास , (१५३६) ४. भट्टारक यश कीति सं १५.३८ ४. अनन्तदास , (१५५८) ... ब्रह्म यसोधर मं १५८५ से पूर्व ५. हरिराम ॥ (१५५८) . सांगु कवि सं. १५५० ६. पुरुषोत्तम ॥ (१५५८) ७. गुणकीति सं १५२० ८. संवेग सुन्दर उपाध्याय सं. १५४८ ६. बाचक मतिशेखर गुरु नानक एवं कान्बीरदास से सभी परिचित है ।ये कवि भारतीय जन मानस के कयि बन चुके हैं। अनन्तदास कबीर के शिष्यों में से थे जिन्होंने रैदास की परिचई कबीरदास की परिचई एवं त्रिलोदनदास की परिचई जैसे काश्यों की रचना की। हरिराम की गीलाभान प्रकाण (सं १५५६) तथा पुरुषोत्तम की पश्चिमेष (सं. १५५८) रचनायें मिलती हैं । इसी समय कुतबन भेख ने मृगावती तथा सेन कवि ने भी अपनी कविताओं के माश्यम से भक्ति रस की धारा को प्रवाहित किया 11 जैन कवियों में ज्ञानसागर ने संवन् १५३१ में श्रीपालरास की रचना की थी 1 इसकी एक प्रति राजस्थान प्रास विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर में उपलब्ध है। संवेगसुन्दर उपाध्याय ने मंवत् १५४८ में सारसिस्वामन रास की रचना की थी तथा रामचन्द्र सूरि ने रजर्षि चरित की संवत् १५५० में रचना की थी। यह समय महाकवि ब्रह्म जिनदास से प्रभावित युग था जिन्होंने पचास से भी अधिक रासकाव्यों की रचना करके एक नया कीर्तिमान स्थापित किया था। इसलिए अधिकांश जैन कवि उन्हीं के पद चिह्नों पर चलकर रास नामान्तक काव्यों की रचना करने में लगे हुए थे। १. मिश्र बन्धु विनोद प्रथम माग-पृष्ठ संख्या 111-113
SR No.090004
Book TitleAcharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size3 MB
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