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सुकोसलराय चुपई .
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दूहा अजोध्या नयरी अति भली, उत्तम कहीइ ठाम । राज करि परिवार सु', कौत्ति धवल तस नाम ।। १० ।। तस परि राणी रूयडी, रूपवंत सुवसेष । सहिदेवी नामि सुण, भक्ति भरतार विवेक ।। ११॥ एक दिवस मनि चीतवि, मन माहि आण्यं ध्यान । विषय तणां सुष परिहरी, साधि भुगति निधान ।। १२ ।
घुपई राइ प्रधान ते डाव्या सही। राज तणी सोषामरिण नाही।। धन योयननि जोषिम घणु । साहिजि शरीर नहीं प्रापणु ॥ १३ ।। ब्रह्म दीक्षा लेस बनि जाई। पंच महावत पार्नु सही ।। मुगति तणां सुख जोवा काजि। तिरिय कारण हूँ मेल्हुँ राज ।। १४ ॥ कहि प्रधान सुणु चीनती । पुत्र बिना किम थासु यती ।। राज भार सुतनि संभालि । पछि महाव्रत निश्चल पालि ॥ १५ ॥ पर धानि राजा प्रीव्यु । नयर मोहि उछल नव नवु ॥ सहिदेवी प्रभ धरित जिसि । राय मंदिर थी टाली तिसि ।। १६ ।। राइ कहि राणी किहाँ गई। ज्याष विणेषि विह्वल थई । इणि भोलावि राख्यु भूप । जु सुत जन्म्यु असंभम रूप ।। १७ ।। सहिदेवी सुत जन्म्यु जेह । दीघु नाम सकोशल तेह ।।
आपरिण मंदिरि छानां बिहि । उग्यु सूर न ढांक्यु रहि ।। १ ।। कुयण तणां अंबर जे वली। दनि लेई महिलीनी कली ।। मजडि रान सरोवर जेह । तिहां जाई वस्त्र पपालि तेह ॥ १६ ।। ते सरपालि ब्राह्मण अछि । तिणि वटंतर पूछ्यू पछि ।। ऊर्जाड रानि भाबि सा भणी । तेविमासरण छि मुझ घरणी ।। २० ॥ दासि कहि सुणि ब्राह्मण बात | कुयर सकोशल पालि माति ।। जु सुत जन्म्यु जागि राउ तु तप लेईनि वन माहि जाइ ।। २१ ॥ ति रिण अबसरि ब्राह्मण वलकल्यु ! लेई भेट राजानि मल्यु ।। तोहारि सुत जन्म्यु संसारि । प्रणि महोछवि दान दे वारि ।। २२ ॥