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जन्म महोत्सव
रिषभनाथ की धूलि
अथ हाल श्रीजी
आउ हो पुत्र हौमा दश मास नाभि नरिदवी पूगीय प्रांस । जनम महोत्सव सुरपति आया । च विघ काय सुरासुर या
॥ १ ॥
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इन्द्र ऐरावण विसि पहूत । जय जय शब्द ले कर बहुत । सूत महिय इंद्राणीय जाई। मायामि बालक नयनोपाई ॥ २ । आरणीय बालक इन्द्रनि दीधु' । प्रणमीय सुरपति निज करि लीधु । गजपति बदसीनि सुरगिर जांइ । देव देवी जिनवर गुण गइ || ३ || पांडुक बन कंबल सिला नाम बिसार्या जिन करीय प्रणाम क्षीर समुद्र जल कुंभ भराव्या । सहस महोतर सुर वर लाया
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इंद्र इंद्राणीय करि अभिषेक श्राप प्रापरिण संग रचियां
विवेक । स्नान करावित्र सोल विभूषण भूव्या से जिनवर सहि जु
सुलक्षण ।। ५ ।
इन्द्र अंगूठि श्रमृत देइ । ज्ञानीय चर्म वदन नवि लेई । उत्सव अति घरिण भाव्या ते ग्राम सुर नर सज्जन हरषीया
ताम ।। ६ ।। प्राणी इन्द्राणीह माइनि प्राप्यु । नृषभ कुंबर वर नाम जु थाप्यु | नाचीय सुरपति पूजीया तात । ग्या निज मंदिर करता
ते बात ।। ७ ।।
वाघए कुमर ते नव नव रंगि । धनपति भगत करि बहु संगि योवन लक्षण गुए। करी मंड्यु । बाल पणुं जिन सहि जियां
छांड्यु | ८ ||