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________________ आचार्य हेमचन्द्र १८४ विषय में बहुत कुछ लिखा है। अपभ्रश में अनेक उदाहरण ऐसे मिलते हैं जिनसे सिद्ध होता है कि यह भाषा सिन्ध से बङ्गाल तक बोली जाती थी । साहित्यिक अपभ्रंश निश्चय ही प्राकृतमूलक अपभ्रंश है, जो उकार बहुल है । जैसे : संस्कृत - रामः वनं गतः । प्राकृत - रामो वणं गओ। अपभ्रश – रामु वणु गयउ । हेमचन्द्र के अपभ्रंश व्याकरण एवं साहित्य का अवलोकन करने से यह मालूम होता है कि अपभ्रंश में तीन-चार कारक ही रह गये थे। अयोगात्मकता की ओर उसकी प्रवृत्ति स्पष्ट दिखायी देती है। इसमें तज, केर आदि परसर्गों का उपयोग होने लगा था। क्रियाओं के स्थान पर क्रियाओं से सिद्ध विशेषणों का उपयोग होने लगा था । व्याकरण की इन विशेषताओं के अतिरिक्त काव्यरचना की बिलकुल नयी प्रणालियाँ और नये छन्दों का प्रयोग अपभ्रंश में पाया जाता है। दोहे और पहुडिया छन्द अपभ्रंश काव्य की अपनी वस्तु हैं, इन्हीं से हिन्दी दोहों व चौपाईयों का आविष्कार हुआ है। आचार्य हेमचन्द्र के साहित्य में 'अपभ्रंश का व्याकरण' एक अपूर्व देन है । उन्होंने उदाहरणों के लिये अपभ्रंश के प्राचीन दोहों को रखा है इससे प्राचीन साहित्य की प्रकृति और विशेषताओं का ज्ञान होता है, साथ ही भाषा में उत्पन्न परिवर्तन का पता चलता है । आचार्य हेमचन्द्र ने ही सबसे पहले अपभ्रश का इतना विस्तृत अनुशासन उपस्थित किया है । लक्ष्यों में पूरे दोहे दिये जाने से लुप्तप्राय अपभ्रंश साहित्य सुरक्षित रह सका है। भाषा की नवीन प्रवृत्तियों का नियमन, प्ररूपण, विवेचन इनके व्याकरण में विद्यमान है । तत्कालीन विभिन्न प्रदेशों में प्रचलित उपभाषा, विभाषादि का सम्यक् विवेचन कर उन्होंने अपभ्रश को अमर बना दिया है। उसमें शब्द-विज्ञान, प्रकृतिप्रत्ययविज्ञान, वाक्य-विज्ञान सभी भाषा वैज्ञानिक तत्व उपलब्ध हैं। प्राचीन-अर्वाचीन ध्वनियों की सम्यक् विवेचना भी है । आधुनिक भाषाओं की प्रमुख प्रवृत्तियों का अस्तित्व उसमें विद्यमान है। हेमचन्द्र की भाषा पर प्राकृत, अपभ्रश एवं अन्य देशी भाषाओं के शब्दों का पूर्णतः प्रभाव परिलक्षित होता है। अनेक शब्द तो आधुनिक भाषाओं में दिखलायी पड़ते हैं - जैसे लडडुक - लडडू, लाडू, अथवा गेन्दुक-गेन्द, हेरिक- हेर (गूढ़ पुरुष), कुछ शब्द समीकरण, विषमीकरण इत्यादि सिद्धान्तों से प्रभावित हैं।
SR No.090003
Book TitleAcharya Hemchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV B Musalgaonkar
PublisherMadhyapradesh Hindi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size16 MB
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