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__ आचार्य हेमचन्द्र
होते हुए भी हेमचन्द्र ईश्वरवादी-से प्रतीत होते हैं । वीतराग-स्तोत्रों में उन्होंने महावीर की स्तुति की है, इतना ही नहीं सोमनाथ के मन्दिर में जाकर उन्होंने सोमनाथ की स्तुति भी की है । सर्व साधारण के लिए वे परमेश्वर के लक्षण देते हैं कि सर्वज्ञ राग-द्वेषादि समस्त दोषों से निर्मूक्त त्रैलोक्यपूजित और यथास्थित तत्वों के उपदेशक को ईश्ट र कहते हैं । वही परमेश्वर 'अर्हत्' देव है । सभी वस्तुओं के ज्ञान में जो रुकावटें या आवरण हैं उनके नष्ट हो जाने पर अर्हन मुनि का यह स्वभाव ही हो जाएगा कि वे सभी वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करें। फिर सर्वज्ञत्व उनमें क्यों नहीं होगा? ज्ञान के वर्धमान प्रकर्ष की पूर्णता जिसमें प्रकट होती है वह सर्वज्ञ सर्वदर्शी कहलाता है। जैनों के अनुसार ईश्वर जगत का कर्ता नहीं है । वे यद्यपि जगत् स्रष्टा के रूप में ईश्वर को नहीं मानते हैं फिर भी जैन-धर्म में तीर्थङकर ही मानों ईश्ट र है । जो-जो गुण ईश्वर के लिए आवश्यक समझे जाते हैं वे सभी जैन तीर्थङ्करों में पाये जाते हैं । मार्ग-दर्शन के लिए एवं अन्तः प्रेरणा के लिए इन्हीं की पूजा की जाती है।
___ पातञ्जल योगदर्शन के सेश्वर होने पर भी उसमें ईश्वर के स्वरूप की विवेचना नहीं है । ईश्वर की उपयोगिता इसी में है कि वह भी चित्त की एकाग्रता या ध्यान के साधनों में से एक है । इस प्रकार 'योगसूत्र' तथा 'योगशास्त्र' इस विषय में भी पास-पास आरहे हैं । पातञ्जल 'योगसूत्र' के अनुसार यौगिक साधन के लिए अधिकारी- पात्र व्यक्ति की जरूरत है। चाहे जो मनुष्य आसन, प्राणायाम, ध्यान-धारणा आदि नहीं कर सकता । मनुष्य आसन, प्राणायाम, आदि सोपान परम्परा से ही आत्मसाक्षात्कार का अनुभव कर सकता है, अन्यथा नहीं। अतः पातञ्जल का योगमार्ग एक प्रकार से ऐकान्तिक हो गया है। उसके द्वार सबके लिए खुले नहीं है। उसमें सबको आत्मानुभूति देने का आश्वासन भी नहीं दिया गया है । 'योगशास्त्र' में सभी मनुष्य उनके बताये हुए मार्ग पर चल कर मुक्तावस्था का आनन्द अनुभव कर सकते हैं।
___ जैन धर्म में सब कुछ आचार-धर्म में ही समाविष्ट है। आचार धर्म में भी आचार्य हेमचन्द्र ने ऐकान्तिकता नहीं आने दी है। उनका दर्शन संसार के भिन्नभिन्न मतों के प्रति आदरभाव रखने वाला दर्शन है । वहाँ सबके लिये द्वार खुले हैं। उनके मत के अनुसार ब्राह्मण, स्त्री, भ्र ण, गाय, इन सबकी हत्या करने से नरक भोगने के अधिकारी और ऐसे ही अन्य पापी भी योग की शरण लेकर पार उतर गये हैं। (१-२श्लोक) अपराधियों के लिए भी वहाँ आत्मोत्थान करने का अवसर दिया गया है । 'अपराधी मनुष्य के ऊपर भी प्रभु महावीर के