________________
५१० ]
| आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
अध्यात्म के क्षेत्र में याचार्य अमृतचन्द्र के समग्र साहित्य का जितना व्यापक प्रचार व प्रसार भारतवर्ष के कोने-कोने में हुआ है, जितनी के अमृतचन्द्र व्यक्तित्व से अध्यात्मधारा धनुप्राणित रही तथा वर्तमान में है उतना प्रचार-प्रसार ग्रन्य ग्राचार्य की कृतियों का संभवतः नहीं हुआ और उतनी अन्य आचार्य के व्यक्तित्व से अध्यात्म वारा अनुप्राणित नहीं रही है । आचार्य चन्द्र की कृतियों का विभिन्न भाषायों में विभिन्न प्रकाशनों संस्करणों तथा स्थानों द्वारा लाखों की संख्या में प्रकाश में आना, भारत के कोने कोने में उनकी कृतियों का अनवरत श्रध्ययन, मनन, पठन-पाठन, प्रचार एवं प्रसार होना इस बात का प्रमाण है कि समृतचन्द्र का व्यक्तित्व महत्वपूर्ण वरदान और उनकी कृतियां महत्वपूर्ण देन हैं ।
"उनका बहुमुखी व्यक्तित्व एक ऐसा सुव्यवस्थित जीवनरूपी गुलदस्तों है, जिसमें व्यक्तित्व के विभिन्न प्रसून प्रफुल्लित, सौरभित एवं सुशोभित हैं। ये अन्तर्मुख कवीन्द्र, प्रीतम साहित्यसृष्टा, सकल वैयाकरण, लब्धप्रतिष्ठ भाषाविद् स्थावित्रा शिद्धानेता अद्वितीय तार्किक, नैयायिक, ग्रपादक अध्यात्मरस में निमग्न रहने बाने स्वरूपगुप्त अमृतचन्द्र हैं । वे गम्भीर अध्यात्म रसिक तथा अध्यात्मयुग प्रणेता हैं । उनका कृतित्व भी व्यापक विमल एवं गम्भीर है। उनके साहित्य से निर्झरित अध्यात्म प्रवाह द्वारा प्रज्ञान विषय तथा कषाय में संतप्त जनों को निरन्तर अनुपम शांति, संतुष्टि एवं द्यानन्द मिलता रहेगा ।
|
उनका व्यक्तित्व भारतीय संस्कृत वाङ् मयाकाश का पूर्णचन्द्र है, जैन प्रध्यात्मरस का ध्रुवतारा है, दिगम्बर जैन श्राचार्य परम्परा का महान् रत्न है तथा उनका कर्तृत्व विशाल, गहन एवं सुसमृद्ध है, महान् वैशिष्टयों का रत्नाकर धौर चिन्तामणिरत्नवत् हितकर है D