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कृतियाँ |
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हैं । उपर्युक्त लेखक ( पं० भूधर मिश्र ) की रचना की एक प्रतिलिपि हनुमानताल, जबलपुर के मन्दिर में भी है। यह तीसरी हस्तलिखित पृथक् पत्रों वाली प्रति है जो लिपि की अपेक्षा भोपाल की प्रति से अत्यधिक सुन्दर, स्वच्छ एवं आकर्षक है परन्तु वटियों की संख्या इसमें और भी अधिक है । उदाहरण के लिए निम्न पद्य तुलना हेतु प्रस्तुत हैं।
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जबलपुर प्रति पद्य १ रणंतपर्याय
पद्य २ परमागस्य
दर्पनतल इव शकला पदार्थमालि
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जासंधुर विधानं
विरोधमथनः नमाम्यःअनेकान्तं
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सोनगढ़ प्रति रतपर्यायः
इस प्रकार पाठशोध की दृष्टि से यह प्रति भी अनुपयोगी ही है । इस प्रति की रचना तिथि तो वहीं विक्रम संवत् १८७१ हैं परन्तु लिपि संवत् का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। टीकाकार का परिचय अन्त में अवश्य दिया गया है।' टीकाकार भूधर मिश्र ने जैनधर्म तथा विशेषतः
दर्पण तल इव शकला पदार्थमालिका
परमागमस्य
जात्यात निदिध विरोधमधनं नामाभ्यनेकान्तम्
शाहगंज मोहे सुखी भाग अनुसार,
१. दोहरा नगर आगरे के निकट जैनधाम अभिराम सों चारों वर्ण प्रजा बसे भट्टलोपत तहां विद्याधन मुरिख पंडित होत है जिनकी मंगति पाइ, जैसे पारस को परस लोह कनक हो जाइ || ३ || रंगनाथ तिनमें निपुण, सृजन सराहत जाहि
विधाता ताहि ॥ ४ ॥
सुखकार । अनुसार ॥ ॥
सदा शास्त्र विद्या विमल दई तिनसी भाग रांजोग करि भयो संग तिन में जैन पुराण हम देखे मति चौपाई से पठन करत बहु भाय श्री पुरुषारथ सिद्ध उपाय | अमृतचन्द्रकृतग्रन्थ अनुग, देखो धर्मरसायनिकूप ।। ६ ।। हिंसा भेद बहुत वा मांहि, पैसे और ग्रन्थ में नाहि ।
गम्भीर - कण्डो अर्थ न समझयो जाइ, तब में रंगनाथ पे आई ॥ ७ ॥
सुखवास, धर्मनिवास ।। १ ।।
भण्डार || २ |