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________________ कृतियाँ ] [ २३५ यह लिपि संवत् १९२६ ( ईस्वी) की है। यह प्रति श्री दिगम्बर जैन मंदिर, चौक, भोपाल में उपलब्ध है । यहाँ भी विभिन्न संवत्सरों की हस्तलिखित तथा मुद्रित कई प्रतियां हैं। इसमें भी पाठ सम्बन्धी अनेक अशुद्धियां हैं जो लिपि विषयक हैं। पूर्वोक्त सोनगढ़ प्रति के साथ इसकी तुलना करने पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सर्वाधिक सही एवं उपयोगी पाठ किस प्रति का है। उदाहरण स्वरूप यहाँ कुछ पद्यों की तुलना की जाती है। भोपाल की (हस्तलिखित) प्रति पद्म क्रमांक १ पर्याय दन पद्य २ पद्य ३ परमागमस्थ जीव विलसिताना नेत्रे परमागम विदुपा सिद्ध युपायय विणेय दुर्बोधा व्यवहार वर्णयत्यभूतार्थं वर्णयन्त्यभूतार्थम बोधविमुखः देशयत्यभूतार्थं बोधविमुखः देशयन्त्यभूतार्थं म केवलमवैति केवल मेवेति मानवक माणवक मध्यस्थ मध्यस्थः देशनाया देशनाया: शिष्य शिष्यः ऐसी ही त्रुटियां प्राय: सम्पूर्ण ग्रन्थ में पाई जाती हैं, अतः शुद्ध पाठानुसंधान की दृष्टि से यह प्रति भी अधिक उपयोगी प्रतीत नहीं होती । इस प्रति में पद्य संख्या में भी अन्तर है। मुद्रित प्रति में २२६ पच हैं जबकि हस्तलिखित प्रति में केवल २२५ पद्य हैं। वास्तव में मूलपाठ पूर्ण है परन्तु पद्य संख्या लिखने में लिपिकार ने कई जगह भूलें की पद्म ४ पद्य ५ पद्य ६ सोनगढ़ को ( मुद्रित ) प्रति पर्यायः दर्पण पद्य ७ पद्य ८ परमागमस्य जीवं विलसितानां नेत्रं परमागमं विदुषां सिद्ध युपायोऽयम विनेय दुर्बोधा: व्यवहारं
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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