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कृतियाँ 1
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में उपलब्ध है। यहां भिन्न भिन्न संवत् की अन्य कई प्रतिलिपियां भी हैं । इस प्रति में लिपि विषयक शाब्दिक त्रुटियां अनेक हैं। उदाहरण के लिए प्रारम्भिक कुछ पथों की टोडरमलजीकृत मुद्रित प्रति से तुलना की जाती है । मुद्रित प्रति दिगम्बर जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट - सोनगढ़ जिला भावनगर (सौराष्ट्र) से प्रकाशित है।
जबलपुर की (हस्तलिखित) प्रसि पुरुसार्थ सिद्धयोपयाय
(पद्य क्रमांक १) पय्यायः दर्पण
(पद्य - २) निषद्ध
विलसिताने अनेकां
( पच-३) रूपोद्रयते
विदुष्षां सिधूपायोयं
( पच-४) दुरस्त
निश्चयज्ञा
( पद्य - ५ ) वरणयन्त्यभूतार्थ विमुख प्राय
(पद्य - ६ ) अवुधस्य बोधनार्थ मुनीस्वरा (पद्य ७ ) माणवक हि एव (पद्य) य प्राप्नोति
देखना
शिष्
सोनगढ़ की ( मुद्रित ) प्रति पुरुषार्थसिद्ध युपाय
पर्यायः
दर्पण
निषिद्ध
विलसितानां
श्रनेकान्तम
रूपोद्भियते
विदुषां
सिद्ध युपायोऽयम
दुस्तर निश्चयज्ञाः
वर्णयन्त्यभूतार्थं म्
विमुखः प्रायः
अबुधस्य बोधनार्थं मुनीश्वराः
माणवक एव
यः प्राप्नोति
देशना
शिष्य :
इसी प्रकार की त्रुटियां प्रायः अधिकांश पद्यों में पाई जाती है । उपर्युक्त तुलना से यह स्पष्ट हो जाता है कि हस्तलिखित प्रति में ही टियां पाई जाती हैं, मुद्रित प्रति में उन त्रुटियों का सुधार हुआ है ।
द्वितीय हस्त लिखित प्रति पं० भूवर मिश्र द्वारा रचित उपलब्ध हुई है । यह प्रति ब्रजभाषा (हिन्दी) में है। इसकी रचना संवत् १८७१ ( ईस्वी १८१४ ) ये हुई थी। यह पृथक् पत्रों वाली स्पष्ट अक्षरों में में लिखी गई हैं । लिपिकार पंजवार चौबे चन्देरी ( मध्य प्रदेश ) हैं ।