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तृतीय अधिकार
२३५ नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमानों में सम्यग्दृष्टि मुनि ही जाते हैं, मिथ्यादृष्टियों का प्रवेश नहीं है ।
प्रथम स्वर्ग में बत्तीस लाख, दूसरे में अट्ठाईस लाख, तीसरे स्वर्ग में बारह लाख, चौथे में आठ लाख, पाँचवें, छठे में चार लाख, सातवें-आठवें स्वर्ग में पचास हजार, नवमें-दशवें स्वर्ग में चालीस हजार, ग्यारहवें और बारहवें स्वर्ग में दस हजार और आनत, प्राणत, आरण और अच्युत स्वर्ग में सात सौ विमान हैं।
अधो ग्रैवेयिक में एक सौ ग्यारह, मध्यम ग्रैवेयिक एक सौ सात और ऊर्ध्व ग्रैवेयिक में इकानवें विमान हैं।
नव अनुदिश में नव और अनुत्तरों में पाँच विमान हैं-इस प्रकार सारे विमान चौरासी लाख सत्तानबे हजार तेईस हैं, इतने ही जिन मन्दिर हैं। जिन मन्दिरों का वर्णन भवनवासी देवों के समान ही है केवल ऊँचाई विस्तार आदि में अन्तर है।
सौधर्म और ऐशान स्वर्ग के देवों की उत्कृष्ट आयु दो सागर, सनतकुमार माहेन्द्र के देबों की सात सागर की, ब्रह्म ब्रह्मोत्तर के देवों के दश सागर, लान्तव कापिष्ट के देवों की चौदह सागर को शुक्र, महाशुक्र देवों की सोलह सागर की, शतार, सहस्रार देवों की अठारह सागर की, आनत, प्राणत देवों की बीस हजार सागर की आरण और अच्युत के देवों की बाईस सागर को आयु है ।
नव ग्रेवेयिक में क्रमशः इक्कीस, बाईस, तेवोस, चौबीस, पच्चोस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतोस, तीस और इकतीस सागर प्रमाण आयु है। नव अनुदिश में बत्तीस सागर और अनुत्तरों में तेतीस सागर की आयु है। ___ सौधर्म और ईशान स्वर्ग में जघन्य आयु पल्योपम प्रमाण है तथा ऊपर के देवों में नोचे वाले स्वर्गों की उत्कृष्ट आयु ऊपर वाले स्वर्गों में जघन्य होती है । परन्तु सर्वार्थसिद्धि में जघन्य आयु नहीं होती।
सौधर्म और ईशान स्वर्ग को देवांगना की आयु पाँच-पाँच पल्य प्रमाण है।
सनत्कुमार, माहेन्द्र देवियों को सत्रह पल्य, ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर पच्चीस पल्य, लान्तव और कापिष्ट में पैंतीस पल्य, शुक्र-महाशुक्र, में चालीस पल्य, शतार, सहस्रार में पैंतालीस पल्य, आनत-प्राणत में पचास पल्य और