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आर्यिका हैं । आचार्य शुभचन्द्र के इस छोटे से किन्तु महान् ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद करके आपने अपनी विशिष्ट विद्वत्ता का परिचय दिया है । आपकी भाषा सरल, सुपाठ्य और मनोग्राही है तथा ग्रन्थकर्ता के मूल भावों को ज्यों का त्यों प्रकट करती है । मौलिक लेखन की तुलना में अनुवाद करना एक अत्यन्त कठिन और दुरूह कार्य है । परन्तु पूज्य सुपार्श्वमती माताजी ने इस कठिन कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न करके अपने विशाल श्रुतज्ञान का परिचय तो दिया ही है साथ में जैन वांगमय की श्रीवृद्धि भी की है ।
श्रुतपंचमी सं० २०४८ दि० १६-६-९१
कपूरचन्द पाटनी एम. ए., एल. एल. बी.
गौहाटी