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तृतीय अधिकार चूलिकाप्रकीर्णकप्रज्ञप्तिः
पाँच प्रकार की चूलिकाओं का कथन तच्चूलियासुभेया पंच वि तह जलगया हवे पढमा। जलथंभण जलगमणं वण्ण दि विहिस्स भक्खां जं ॥ १॥
तच्चूलिकासु भेदाः पंचापि तथा जलगता भवेत्प्रथमा। जलस्थंभनं जलगमनं वर्णयति वह्नः भक्षणं यत् ॥ वेसणसेवणमंतंतंतंतवचरणपमुहविहिभए । णहणहदुगणवअडणवणहदुण्णि पयाणि अंककमे ॥२॥ प्रवेशनसेवनमंत्रतंत्रतपश्चरणप्रमुखविधिभेवान् ।
नभोनभोद्विकनवाष्टनवनभोद्विकानि पदानि अंकनमेण ॥ पयाणि २०९८९२००।
जलगदचूलिका-जलगतचूलिका। मेरुकुलसेलभूमीपमुहेसु पवेससिग्धगमणादि । कारणमंतंतंतंतवचरणणिरूवया रम्मा ॥ ३ ॥ मेरुकुलशैलभूमिप्रमुखेषु प्रवेशशीघ्रगमनादि ।
कारणमंत्रतंत्रतपश्चरणनिरूपिका रम्या ॥ दृष्टिवाद का पाँचवाँ भेद है चूलिका, जलगता, स्थलगता, मायागता, रूपगता और आकाशगता के भेद से चूलिका पाँच प्रकार की है ।
जिसमें जलस्थंभन, जलगमन, अग्नि स्तंभन, अग्नि भक्षण, अग्नि आसन ( अग्नि पर बैठना ), अग्नि प्रवेश करना आदि के कारण भूत मंत्र, तंत्र, तपश्चरण आदि का वर्णन है वह जलगता चूलिका है । उसके शून्य शून्य दो नौ आठ नौ शून्य और दो अंक क्रम में पद हैं अर्थात् जलगता चूलिका के दो करोड़, नौ लाख, नवासी हजार, दो सौ पद हैं ॥ १-२ ॥
॥ इस प्रकार जलगत चूलिका समाप्त हुई है। मेरू कुलाचल भूमि आदि को प्रवेश, शीघ्रगमनादि का जो वर्णन करता है वह स्थलगता है वास्तु वा भूमि सम्बन्धी दूसरे शुभ-अशुभ कारणों का वर्णन करता है। स्थलगता चूलिका के दो करोड़, नौ लाख, नवासी हजार, दो सौ पद हैं।