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द्वितीय अधिकार
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होता है । कहीं पर दो अक्षर से भी होता है जैसे 'राम' का दशरथ का पुत्र है ।
आठ अक्षर से निष्पन्न प्रमाण पद है । यह अवस्थित है क्योंकि इसको आठ आदि संख्या नियत है जैसे " नमः श्री वर्द्धमानाय " इत्यादि ।
सोलह सौ चौतीस करोड़, तिरासी लाख सात हजार, आठ सौ अठासी अक्षरों का मध्यम पद होता है। इस मध्यम पद के द्वारा पूर्व और अंगों का पद विभाग होता है ।
श्रुतज्ञान के एक सौ बारह करोड़, तिरासी लाख, अट्ठावन हजार पाँच ही पद होते हैं ।
इस पद ज्ञान के ऊपर एक अक्षर की वृद्धि होने पर पद समास ज्ञान प्रारम्भ होता है ।
संख्यात पदों के समूह का एक संघात ज्ञान होता है, एक पद से क अक्षर अधिक और संघात ज्ञान से एक अक्षर न्यून मध्यम भेद पद समास कहलाते हैं । यह संघात ज्ञान गति मार्गणा में किसी एक गति का निरूपण करता है ।
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संख्यात संघात का समूह प्रतिपत्ति ज्ञान कहलाता है । संघात के ऊपर और प्रतिपत्ति के पूर्व दो संघात, तीन संघात आदि संघात समास हैं अर्थात् प्रतिपत्ति के जितने अधिकार होते हैं, उनमें एक अधिकार का नाम संघात संज्ञा है ।
संख्यात प्रतिपत्ति के समूह को अनुयोग ज्ञान कहते हैं । अनुयोग के पूर्व और प्रतिपत्ति के बाद संख्यात प्रत्तिपत्ति समास के भेद हैं ।
संख्या अनुयोगद्वार का समूह एक प्राभृत-प्राभृत ज्ञान होता है । दो अनुयोग से लेकर जब तक संख्यात अनुयोग का समूह न हो तब तक संख्यात प्रकार के अनुयोग समास ज्ञान है ।
संख्यात प्राभृत-प्राभृत का एक प्राभृत ज्ञान होता है और प्राभृतप्राभृत से लेकर प्राभृत ज्ञान के पूर्व संख्यात प्रकार का प्राभृत-प्राभृत समास ज्ञान है ।
बीस प्राभृत की एक वस्तु होती है । वस्तु ज्ञान के पूर्व और प्राभृत के ऊपर जितने भेद हैं वह सब प्राभृत समास हैं अथवा पूर्व श्रुतज्ञान के जितने अधिकार हैं उनकी वस्तु संज्ञा है । जैसे उत्पाद पूर्व के दश अधिकार हैं इसमें दश वस्तु हैं । आग्राणीय में चौदह अधिकार हैं उसमें चौदह वस्तु हैं अर्थात् वस्तु के समूह को पूर्व कहते हैं । पूर्व ज्ञान के पूर्व और वस्तु के ऊपर जितने ही भेद हैं वह वस्तु समास है ।