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मुनितोषणी टीका, कायोत्सर्गाध्ययनम्-५
२९९ ___'करेमि भंते ? सामाइयं.' 'इच्छामि ठामि काउस्सग्गं.' ' तस्सोतरीकरणेणं.' इत्येताः सर्वाः पट्टिकाः पठित्वा कायोत्सर्ग विदध्यात् , तत्र 'लोगस्स उज्जोयगरे०' इति पट्टिकां वारचतुष्टयं मनसा संस्मृत्य सनमस्कार कायोत्सर्ग समाप्य च पुनरपि 'लोगस्स उज्जोयगरे०' इत्यादि पट्टिकां पूर्णामुच्चारयेत् , ततः 'इच्छामि खमासमणो०' इति पट्टिकां द्विः पठित्वा गुरुसमीपे प्रत्याचक्षीत ॥१॥ इति श्रीविश्वविख्यात-जगद्वल्लभ-प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषाकलितललितकलापाऽऽलापक-प्रविशुद्धगधपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक-वादिमानमर्दक-श्रीशाहूछत्रपतिकोल्हापुरराजमदत्त 'जैनशास्त्राचार्य-पदभूषित--कोल्हापुरराजगुरु-बालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्रीघासीलाल-तिविरचितायां श्रीश्रमणमूत्रस्य मुनि
तोषण्याख्यायां व्याख्यायां पश्चम
कायोत्सर्गाख्यमध्ययनं समाप्तम् ।। ५॥ उसमें प्रथम 'इच्छामि णं भंते' की पट्टी से कायोत्सर्ग की प्रतिज्ञा करके करेमि भंते ! सामाइयं' और 'इच्छामि ठामि काउस्सग्गं.' तथा 'तस्सोत्तरीकरणेणं०' बोलकर कायोत्सर्ग करें' और कायोत्सर्गमें चार 'लोगस्स.' मनमें गिन कर नमस्कारपूर्वक कायोत्सर्ग की समाप्ति करें, फिर 'लोगम्स' की पट्टी प्रगट बोलें। तदनन्तर 'इच्छामि खमासमणो०' की पट्टी दो बार बोल कर गुरुके निकट प्रत्याख्यान करें ॥१॥
वमअध्ययन समाप्त ॥ तभा प्रथम 'इच्छामि णं भंते,' नी पायी योत्सना प्रतिज्ञा शन 'करेमि भंते सामाइयं' भने 'इच्छामि ठामि काउस्सग्गं' तथा 'तस्सोत्तरीकरणेणं' झालीन योस ४२वो भने योसभा या२ 'लोगस्स' मनभा या२६३ १२ मोदी नभ७२ पूर्व योत्सर्गी समाप्ति ४२वी, भने पछी 'लोगस्सी पारी प्रगट मालवी, ते पछी 'इच्छामि खमासमणो' नी पाटी मे पा२ मातीने गुरु सभापे प्रत्याज्यान ४२. (१)
ઈતિ પાંચમું અધ્યયન સંપૂર્ણ