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मुनितोषणी टीका
११३ बोल्यो होऊ, काल थकी पहर रात्रि गयां पीछे गाढे गाढे शब्द बोल्यो होऊ, भाव थकी रागद्वेष से बोल्यो होऊ, गुण थकी संवर गुण, दूसरी भाषासमिति के विषय जो कोई पाप दोष लाग्यो होय तो देवसिय संबंधी तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
तीसरी एषणासमिति के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोऊं, द्रव्य थकी सोले उदगमणका दोष, सोले उत्पातका दोष, दश एषणाका दोष इन बयालीश दोष सहित आहार पाणि लायो होऊ, क्षेत्र थकी दो कोश उपरांत लेजाईने भोगव्यो होय काल थकी पहेला पहर को छेला पहर में भोगव्यो होऊ, भाव थकी पांच मांडलाका दोष न टाल्या होय गुण थकी संवरगुण, तीसरी एषणा समिति के विषय जो कोई पाप दोष लाग्यो होऊं तो देवसिय संबन्धी तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।।
चोथी आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिति के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोऊ, द्रव्य थकी भाण्डोपकरण अजयणा से लीधा होय अजयणा से रख्या होय, क्षेत्र थकी गृहस्थके घर आंगणे रख्या होय, काल थकी कालोकाल पडिलेहणा न की होय, भाव थकी ममता मूर्छा सहित भोगव्या होय, गुण थकी संवर गुण, चोथी समिति के विषय जो कोई पाप दोष लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥ ४ ॥
पांचवी उच्चार-पासवण-खेल-जल्ल- सिंघाण-परिहावाणिया समिति के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय ते आलोऊं, द्रव्य थकी ऊंची नीची जगह परठव्यो होय, क्षेत्र थकी गृहस्थ के घर आंगणे परठव्यो होय, काल थकी दिनको विना देखे रातको विना पूंजे परठव्यो होय, भावथकी जाता आवसही आवसही, न करी होय, परिठवते पहले शक्रेन्द्र महाराज की आज्ञा नहीं ली होय, थोडो पूंजी ने घणो परिठव्यो होय, परठने के बाद तीनवार बोसिरे वोसिरे न किन्हो होय, आवता निःसही निश्सही न करी होय, ठिकाणे आईने काउसग्ग न कर्यो होय, गुणथकी संवरगुण,