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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २३८ वक्तव्यताबारनिरूपणम् व्येण पृष्टो गुरुराह-'तत्थ' इत्यादि । तत्र नयमस्तकमध्ये नैगमसंग्रहध्यवः
त्रिविधामपि वक्तव्यता मिच्छन्ति, नैगमस्य अनेकगमपरत्वात् , संग्रहस्य पार्थसंग्राहकत्वात् , व्यवहारस्य च लोकव्यवहारपरश्यात् । ऋजुसूत्रस्तु समयवक्तव्यतां परसमयवक्तव्यतां चेति द्विविधामेव वक्तव्यतामिच्छति ।
हेतुमाह-'तत्थ' इत्यादि, तत्र-तृतीयवक्तव्यताभेदे खलु या सा स्वसमयक्तव्यता सा समयं प्रविष्टावक्तव्यतायाः प्रथमे भेदेऽन्तर्भूता । या तु परकिस वक्तव्यता को अंगीकार करता है ?' सो कहते हैं (तस्य
मसंगहववहार तिविहं वत्तन्वयं इच्छंति) सात नयों में जो नैगमनय संग्रहनय और व्यवहार नय ये तीन नय हैं, वे तो तीनों प्रकार की अक्तव्यता को स्वीकार करते हैं क्योंकि नैगमनाया अनेक गमों में तत्पर होता है-अर्थात् नैगमनय अनेक प्रकार से वस्तु का प्रतिपादन करता -इसकी दृष्टि में (तं जहा ससमय०) स्वसमयवक्तव्यता भी ठीक है,
समयवक्तव्यता भी ठीक है और स्वपरसमयवक्तव्यता भी ठीक है। इसी प्रकार सर्वार्थसंग्राहक होने से संग्रहनय और लोक व्यवहार
अनुसार प्रवृत्ति करने में तत्पर होने के कारण व्यवहारनय भी इन तीनों वक्तव्यताओं को मान्य रखता है । (उज्जुलुओ दुविहं वत्तव्ययं इछा, तं जहा ससमयक्त्तव्यय, परसमय बत्तव्वयं) ऋजुसूत्र नय वसमयवक्तव्यता और परसमयवक्तव्यता इन दो वक्तव्यताओं को मान्य रखता है। क्योंकि (तस्थ णं जा सा ससमयवत्तव्यया सा ससमय पविट्ठा) तीसरी जो स्वसमय परसमयवक्तव्यता है उसमें (तत्थ णेगमसंगहववहारा तिविहं वत्तवय इच्छंति) सात नयामा २ नमः નય, સંગ્રહ નય, અને વ્યવહાર નય આ ત્રણ નચે છે, તે તે ત્રણે પ્રકારની વકતવ્યતામાને છે. કેમકે કૌગમનય અનેક ગામોમાં તત્પર હોય છે, એટલે
ગમનય અનેક પ્રકારથી વસ્તુનું પ્રતિપાદન કરે છે. આ નયની દષ્ટિએ (तं जहा ससमय०) २१समय४०यता पीछे, ५२समय तव्यताvey ઠીક છે, અને સ્વપરસમય વકતવ્યતા પણ ઠીક છે. આ પ્રમાણે સર્વાર્થસંગ્રાહક હાવાથી સંગ્રહનય અને લેકવ્યવહાર મુજબ પ્રવૃત્તિ કરવામાં તત્પર હોવાથી ०५१७२ नय५ मा १४०यतासाने मान्य राणे छे. (उज्जुसुओ दुविह. वत्तव्वय इच्छइ, त ससमयवत्तव्वय, परसमयवत्तव्ययं) * सूत्रनय
સમય વકતવ્યતા અને પર વકતવ્યતા આ બે વકતવ્યતાઓને માન્ય રાખે छ. भ. (तत्थ णं जा सा ससमयवत्तव्बया सा ससमय पविट्ठा) त्रील २