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________________ मनुयोगद्वारसूत्र एवं वदन्तं संग्रहनयं ततोऽपि निपुणो व्यवहारनयो भंगति-यत्त्वं भणसि, पश्चानों प्रदेश इति, तन युज्यते । कस्मात ? यथा पञ्चानां गोष्ठिकपुरुषाणां किमपि द्रव्यजातं सामान्यम्-अभिन्नं भवति, यथा हिरण्यं वा सुवर्ण वा धनं वा धान्यं वेति, तत्-वस्मात् न ते वक्तुं युक्तं यथा पश्चानां प्रदेश इति । अयं भाव:अवान्तर सामान्यरूप अपरसत्ता को विषय करता है-और जो विशुद्ध संग्रहनय है वह परसत्ता रूप महा सामान्य को विषय करता है। अवान्तर सामान्य अनेक प्रकार का होता है और महासामान्य केवल एक ही रूप होता है। इसलिये अवान्तर सामान्य को ग्रहण करनेवाला जो अविशुद्ध संग्रहनय है, उसकी दृष्टि में छह का प्रदेश षट् प्रदेश ऐसा कधन संगत नहीं होता है क्योंकि छठा देश प्रदेश धर्मास्तिकायादिकों के प्रदेशरूप ही पडता है स्वतन्त्र नहीं। (एवं वयंतं संगहं ववहारो भणह जं भणसि-पंचण्हं पएसो तं न मगह, कम्हा जा जहा पंचण्हं गोहियाणं पुरिसाणं केहदव्वजाए समण्ण भवइ) इस प्रकार कहनेवाले संग्रहन से व्यवहार नय ने कहा कि जो तुम पंचानां प्रदेश' ऐसा कहते हो, वह बनता नहीं है। क्योंकि पांच गोष्ठिक पुरुषों का काई द्रव्य जात सामान्य होता है-(तं जहा) जैसे (हिरण्णे वा सुखणे वा धणे वा घण्णे वा) हिरण्य, सुवर्ण, धन अथवा घान्य। (तं न ते जुत्तं वत् जहा पंधण्हं पएसो) इस. लिये तुम्हे ऐसा बोलना कि 'पंवानां प्रदेशा' यह युक्त नहीं है। વિષય બનાવે છે અને જે વિશુદ્ધ સંગ્રહ નય છે, તે પર સત્તા રૂપ મહાસામાન્યતે વિષય બનાવે છે. અવાન૨ સામાન્યના ઘણા પ્રકારે છે. અને મહા સામાન્યનું ફક્ત એક જ રૂપ હોય છે. એથી અવાન્તર સામાન્યને ગ્રહણ કરનાર જે અવિશુદ્ધ સંગ્રહનય છે, તેની દષ્ટિએ છને પ્રદેશ ષ પ્રદેશ આ જાતનું કથન ઉચિત નથી કેમકે છઠ્ઠો દેશ પ્રદેશ ધર્માસ્તિકાયાદિકોના પ્રદેશ રૂપ જ डाय छ, २१त नलि. (एवं पयंत संगहं ववहारो भणइ, जं भणसि-पंचण्हं परमों तं न भगइ, कहा जई जहा पंवण्हं गोट्टियाणं पुरिसाणं केइ दव्वज्जाए समण्णे भवई) मा प्रभा ना२। सनयने त्यारे यारनये युने तभे “पंचानां प्रदेशः" भाभ। छ। ते ते योग्य नथा. भ. पांय जा ५२बानोदय सामान्य डाय छे. (तं जहा) २ (हिरणे वा सवण्णे वा धणेवो धण्णे वा) २५य, सुरथ, धन या धान्य, (तं न ते जुत्तं वत्तुं जहा पंह पएसो) Mean भाट तमारे भामधुन "पंचानां प्रदेशः"
SR No.040004
Book TitleAnuyogdwar Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages925
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Book_Gujarati, & agam_anuyogdwar
File Size147 MB
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