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. अनुयोगद्वारसूत्रे छाया-नैरयिकाणां भदन्त ! कियन्ति औदारिकशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! औदारिकशरीराणि द्विविधानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा-वद्धानि च मुक्तानि च। तत्र खलु यानि तानि बद्धानि तानि खलु न सन्ति । तत्र खलु यानि तानि मुक्तानि तानि यथा औधिकानि औदारिकशरीराणि तथा भणितव्यानि । नैर
इस प्रकार पांच प्रकार के शरीरों का सामान्यरूप ले कथन करके अष सूत्रकार नारकादिचतुर्वि शतिदंडक में विशेषरूप से उनकी प्ररूपणा करते हैं --'नेरइया णं भंते । केवइया' इत्यादि ।
शब्दार्थ--(भंते !) हे भदन्त ! (नेरइयाणं) नारक जीवों के (केवहया) कितने (ओरालियसरीरा पण्णत्ता) औदारिक शरीर कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (ओरालियसरीरा दुविहा पण्णत्ता) औदारिक शरीर दो प्रकार के कहे गये हैं। (तं जहा) जो इस प्रकार से हैं (बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य) एक षद्ध और दूसरे मुक्त। (तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया तेणं गस्थि) इनमें जो बद्ध औदारिक शरीर हैं, वे तो नारक जीवों के नहीं होते हैं। क्योंकि नारक जीव वैक्रिय शरीरवाले होते हैं, इसलिये औदारिक बन्धन का अभाव होने के कारण उनके बद्ध औदारिक शरीर नहीं होते हैं। बद्ध औदारिक शरीर मनुष्य और तियश्च के ही होते हैं। (तस्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते जहा ओहिया
ओरालियसरीरा तहा भाणियन्या) तथा जो मुक्त औदारिक शरीर हैं, वे जिस प्रकार से सामान्य मुक्त औदारिक शरीर कहे गये हैं-वैसे
આ પ્રમાણે પાંચ પ્રકારના શરીરનું સામાન્ય રૂપથી કથન કરીને હવે સૂત્રકાશ નારકાદિ ચતુર્વિશતિ દંડકમાં વિશેષ રૂપથી તેની પ્રરૂપણું કરે છે
"नेरइयाणं भंते ! केवइया" त्याह
शहाथ-(भंते ।) 3RI (नेरइयाण) ना२४ लाना (केवड्या) tean (ओरालियसरीरा पण्णत्ता) महरि शरी। अवामा मा०यां छ? (गोयमा !) 3 गौतम! (ओरालियसरीरा दुविहा पण्णचा) मोहा२४ शरीर 5 Ri माया छे. (जहा) २ ॥ प्रभाव छ. (बद्धेल्या य मुक्केल्लया य) मे सर भने बीon भुत (तत्थ णं जे ते बद्धेल्लया देणं
स्थि) मामा २ बर माह शरीर छ, त ना२४ विडता नया કેમકે નારક જીવ વૈક્રિય શરીરવાળા હોય છે, એથી દારિક બંધનના અભાવથી તેમને બદ્ધ ઔદારિક શરીર મનુષ્ય અને તિય"ને જ હોય છે. (तत्थ गं जे ते मुक्केल्लया ते जहा ओहिया भोरालियसरीरा तहा भाणियब्वा)