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अनुयोगद्वारसूत्रे तत्र खलु आमलकानि पक्षियानि तान्यपि मितानि । तत्र खलु बदराणि पक्षिा शानि तान्यपि मितानि । तत्र खलु चणकाः प्रक्षिप्तास्तेऽपि मिताः । तत्र खलु मुद्राः प्रक्षिप्तास्तेऽपि मिताः । तत्र खलु सर्वपाः प्रक्षिप्तास्तेऽपि मिताः । तत्र खल गङ्गाबालुका प्रतिमा साऽपि मिठा । एवमेव एतेन दृष्टान्तेन अस्ति खलु तस्य पल्यस्य आकाशपदेशा ये खलु तैः वालाग्रखण्डैरनास्पृष्टाः । एतेषां पल्यानां कोटीकोटिभवेद् दशगुणिताः । तत् मूक्ष्मस्य क्षेत्रसागरोपमस्य एकस्य भवेद पं चिल्ला पक्खिसा ते वि माया) वहां पिल्लों को भी कोई डाले तो वे वहां समा जाते हैं । (तस्थ णं आमलगा पक्खिता ते वि माया) वहां पर
आंवलों को भी कोई डाले तो वे भी वहां समा जाते हैं। (तस्य गं षयरा पक्खिता ते वि माया) वहां बेरों को भी कोई डाले तो वे भी वहां समा जाते हैं । (तत्य गं चगना पक्खित्ता ते वि माया) वहां पर चनों को भी कोई डाले तो वे भी वहां समा जाते हैं । (तस्थ णं मुग्गा पक्खित्ता ते वि माया) यहाँ पर मूंग को भी कोई डाले तो वह भी समा जाता है । (तस्थ णं सरिसवा पक्खित्ता ते वि माया) वहां पर सरसों को कोई डाले तो वह भी समा जाता है । (तस्थ णं गंगावालुया पक्खित्ता सावि माया) वहां गंगा की बालु भी कोई डाले तो वह भी वहां समा जाती है। (एवमेव) इसी प्रकार (एएणं दिवतेणं) इस दृष्टान्त से (तस्स पल्लस्स) उस पल्प के (आगासपएसा अस्थि) ऐसे भी आ. काश प्रदेश हैं (जे णं) जो (तेहिं बालग्गखंडेहिं) उन बालाग्रखंडों से (अणाफुण्णा) अनास्पृष्ट-अनाकान्त-है। (एएसि पल्लाणं, दसगुणिया बिल्ला पक्वित्ता ते वि माया) त्या निवाने ५५ नाय तर या समाविष्ट लय. (तत्थ णं आमलगा-पक्खिचा वे वि माया) त्यां सामान सास
त्यां समाविषय. (तत्थ णं बयरा पक्खिचा ते वि माया) त्या मार नाभी at a 4g समाविष्ट थय (तस्थ णं पणगा पक्खित्ता देविमाया)
या ना ५ समा जय छ (तत्थ णं ममता पक्खित्ता ते वि माया) या भग नाभीय तत ५५ समाविष्ट य. (तत्थ णं सरिखवा पक्खिचा ते वि माया) त्यां सरस नाभीत ५५ सभा. विजय. (तत्थ णं गंगावालुआ पक्खिता मा वि माया)
त्यांनी रेत नामी त समाविष्ट 25 mय. (एवमेव) मा प्रमाणे (पएणं विद्रण) मान्तया (वस्स पल्लस्म) पक्ष्यना (आगासपएसा अस्थि) 2 पy A देशी छ. (जे) २ (हि बालगाखंडेहि) ते मामा (अणाफुण्णा) मन -मनन्त य. (एपनि परलाणं पसगुपिया कोडा कोडी)