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अनुयोगद्वारसूत्रे विधीयते-क्रियते। धान्यस्याद्रवरूपत्वात् शिखा भवति, रसस्य तु द्रवरूपत्वात् . बहिः शिखाया असंभवादन्तः शिखा भवति । धान्यमानाचतुर्भागवृद्धिलक्षणया अभ्यन्तरशिखया युक्तत्वादिदं रसमानप्रमाणभ्यन्तरशिखायुक्तमित्युच्यते । रसमानप्रमाणं यथा क्रियते तथोच्यते-तद्यथा-चतुःषष्टिकेत्यादि । अयं भावः-पट्पञ्चाशदधिकद्विशतपलप्रमाणं मानिकेत्याख्यं वक्ष्यमाणं रसमानं भवति। तस्या मानिकायाश्चतुष्पष्टितमभागनिष्पना-अर्थात् चतुष्पलप्रमाणा नहीं होती है-भीतर में होती है-अतः यह रसमान प्रमाण धान्यमान से चतुभांगवृद्धिरूप आभ्यन्तर शिखा से युक्त कहा गया है । (तं जहा) रस का मानरूप प्रमाण जिस प्रकार से किया जाता है उस प्रकार को अर्थ सूत्रकार कहते हैं-(चउसटिया ४ चउपलपमाणा बत्तीसिया ८ सोलसिया १६ अट्ठमाइया ३२ चउमाइया ६४ अद्धमाणी १२८ माणी २५६.) २५६ पल का एक मानी नाम का रसप्रमाण होता है। इस मानी का ६४.वां भाग प्रमाण अर्थात् ४ पलममाण चतुष्पष्टिका नाम का रस प्रमाण होता है । मानी का ३२ वां भाग अर्थात् ८ पलप्रमाण द्वात्रिंशका नाम का रस प्रमाण होता है। मानी का १६ वा भाग अर्थात १३ पल प्रमाण षोडशिका नाम का रस प्रमाण होता है। मानी के आठवें भागप्रमाण अर्थात् ३२ पल प्रमाण अष्टभागिका नाम का रस प्रमाण होता है। मानी के चतुर्भागप्रमाण अर्थात् ६४ पल प्रमाण चतुभांगिका नामक रस प्रमाण होता है। मानी के आधे भागप्रमाण अर्थात् બહાર તેની શિખા હોતી નથી અંદર હોય છે. એટલા માટે જ આ રસમાન પ્રમાણુ ધાન્યમાનથી ચતુર્ભાગ વૃદ્ધિરૂપ આત્યંતર શિખાથી યુક્ત કહેવાય છે (जहा) २सनु मान ३५ प्रमाण २ शत ४२वामा मा छे ते सयमा सार ४ छे-चिउसद्विया ४ चउपलपमाणा बत्तीसिया ८ सोलसिया १६, अटुमाइआ ३२, चउमाइया ६४ अद्धमाणी १२८ माणी २५६) २५६ ५ એક માની નામક રસ, પ્રમાણ હોય છે. આ માનીને ૬૪ મે ભાગ પ્રમાણુ એટલે કે ૪ પલ પ્રમાણ ચતુષષ્ટિક નામક રસપ્રમાણ હોય છે. માનીને કરમ ભાગ એટલે કે ૮ પલપ્રમાણુ હત્રિશિકા નામક રસપ્રમાણુ હોય છે. માનીને ૧૬ મે ભાગ એટલે કે ૧૬ પલપ્રમાણુ ડશિકા નામક રસ પ્રમાણું હોય છે. માનીને ૮ મો ભાગ પ્રમાણ એટલે કે ૩૨ પલ પ્રમાણ અષ્ટ ભાગિકા નામક રસ પ્રમાણ હોય છે. માનીને ચતુર્ભાગ પ્રમાણુ એટલે કે ૬૪ પલ પ્રમાણુ ચતુર્ભાગિકા નામક રસપ્રમાણું હોય છે. માનીને અર્ધા