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अनुयोगद्वारा अथ नवनाम निर्दिशति
मूलम्-से किं तं नवनामे?, नवनामे-णव कबरसा पण्णत्ता, तं जहा-वीरो सिंगारो अब्भुओ य रोदो य होइ बोद्धव्यो । वेलणओ बीभच्छो, हासो कलुणो पसंतो य॥१॥सू०१६९॥
छाया-अथ किं तत् नव नाम ? नवनाम-नव काव्यरसाः प्रनताः, तद्यथा-वीरः शृङ्गारः अद्भुतश्च रौद्रश्च भवति बोद्धव्यः। ब्रीडनको बीभत्सो हास्यः करुणः प्रशान्तश्च ॥ १॥मू० १६९॥ से समस्तवस्तुओं के कथन का संग्रह हो जाता है-अतः यह अष्ठमाम ऐसा कहा गया है। ( से तं अट्ठणामे ) इस प्रकार यह अष्ट माम है।॥ सू० १६८॥
अब सूत्रकार नव नामका कथन करते हैं"से किं तं नवनामे ?" इत्यादि ।
शब्दार्थ-(से किं तं नव नामे ? ) हे भदन्त ! वह नव प्रकार का माम क्या है ?
उत्तर-(नव नामे) नव नाम इस प्रकार से है-(णव कबरसा पण्णत्ता) काव्य के जो नौ रस हैं, वे ही नव नाम रूप से प्रज्ञप्त हुए हैं। (तं जहा) वे मौरस ये हैं-(वीरो सिंगारो, अन्भुभो य रोहो य होइ बोद्धव्यो। वेलजओ बीभच्छो हासो कलुणो पसंतोय) वीररस, शृंगाररस, अद्भुतरस रौद्ररस, वीडनकरस, बीभत्सरस, हास्यरस, करुणरस, और प्रशान्तरस। નામાષ્ટક સિવાય બીજું નામ નથી એટલા માટે આ નામાષ્ટકથી બધી વસ્તુઓને
6 यय . मेथी मा मनाम माम अपामा मा०यु छ (सेत भदृणामे) माम मा मनामे छे. ॥सू०११८॥
वे सूत्र॥२ नप नामनु ४थन ४२ छ-. " से कि त नवनामे ?" त्याहशहाथ-(से कि त नवनामे !) 3 महन्त ! नानु नाम शु.छ?
उत्तर-(नवनामे) न१ नाम मा प्रमाणे छे. (गव कचरसा पण्णत्ता) કાવ્યના જે નવ રસ છે તેજ નવા નામથી પ્રજ્ઞપ્ત થયેલ છે. (રંગ) તે નવ नामा ॥ प्रभारी छ. (वीरो सिंगारो, अब्भुमो य रोदो य होइ बोद्धव्वो। वेलगयो बीभच्छो हासो कलुणो पसंतो य) वा२२स, ॥२२स, अद्भुतरस, रौद्ररस, વીડનકાસ, બીભત્સરસ, હાસ્યરસ, કરુણરસ અને પ્રશાન્તરસ,