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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १५९ त्रिकसंयोगनिरूपणम्
अथ त्रियोगान्निरूपयितुमाह
मूलम् -तरथ णं जे ते दस तिगसंजोगा ते णं इमे - अस्थि णामे उदइयउवसमियखइयनिप्फण्णे? अस्थि णामे उदइयउव समियखओवस मियनिष्फण्णेर, अस्थि णामे उदय उवसमियपारिणामियनिष्फण्णे३, अत्थि णामे उदइय खइयखओवसमियनिष्फण्णे४, अत्थि णामे उदइयखइयपारिणामियनिप्फण्णे५, अस्थि णामे उदइयखओवस मियपारिणामियनिष्कण्णे६, अस्थि णामे उवसमियखइयखओवसमियनिष्फण्णे७, अत्थि णामे उवसमियखइयपारिणामियनिष्फण्णेट, अस्थि णामे उवसमिय खओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे९, अत्थि णामे खइयख ओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे १० । कयरे से णामे उदइयउवसमियखइयनिष्फण्णे ? उदइय उवस मियखइय निष्फण्णे - उदइएत्ति मस्से उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं । एस णं से णामे उदइयउवसमियखइय निष्फण्णे ॥ १ ॥ कयरे से णामे उदइयउवसमियखओवसमियनिष्कपणे ? उदइयउवस मियखओवसमियनिष्कण्णेउदइपत्ति मणुस्से उवसंता कसाया खओवसमियाई इंदियाई । एस णं से णामे उदइयउवस मियखओवसमियनिष्फण्णे॥२॥ कयरे से णामे उदय वसमियपारिणामियनिष्फण्णे ? उदइयउवसमियपारिणामियनिप्फणे - उदइएति मणुस्से उवसंता
परन्तु साथ २ उसके और भी भाव मौजूद हैं। क्योंकि समस्त संसारी जीवों में कम से कम तीन भाव तो होते ही हैं । ॥ सू० १५८ ॥
માજૂદ હાય છે, કારણ કે સમસ્ત સંસારી જીવામાં એાછામાં ભેછા ત્રણ ભાવાના તે અવશ્ય સદ્દભાવ હાય છે. પ્રસૂ॰૧૫૮ના