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अनुयोगद्वारा प्रकृतमुपसंहरन्नाह-सैषा भावानुपूर्तीति । नामानुपूादि भावानुपूर्व्यन्ता दशाऽप्यानुपूर्व्यः समुद्दिष्टा इति मूयितुमाह सैपा आनुपूर्वीति । इत्थमुपक्रमस्थ आनुपूर्णा नामकः प्रथमो भेदः समुद्दिष्ट इति सूचयितुमाह-आनुपूर्वीति पदं समाप्तमिति ॥सू० १४२॥
सम्मत्युपक्रमस्य नामाभिधेयं द्वितीयं भेदं पारख्यातुमाह
मलम्-से किं तं णामे ? णामे दसविहे पण्णते, तं जहाएगणामे, दुणामे तिणाम, चउगामे, पंचणामे, छणामे, सत्तणामे, अढणामे, नवणामे, दतगामे ॥सू०१४३॥ छाया-अथ किं तन्नाम? नाम दशविधं पज्ञप्तम्, तद्यथा-एकनाम, द्विनाम, त्रिनाम, चतुर्नाम, पश्चनाम, षण्णाम, सप्तनाम, अष्टनाम, नवनाम, दशनाम ॥मू०१४३॥
टीका-' से किं तं ' इत्यादि
शिष्यःपृच्छति-अथ किं तन्नाम ? इति । उत्तरयति-नाम-जीवगतज्ञानादिपर्यायाजीवगतरूपादिपर्यायानुसारेण प्रतिवस्तुभेदेन नमति तदभिधायकत्वेन वर्तते यहां तक नामानुपूर्वी से लेकर भावानुपूर्वी तक जो दश आनुपूर्वियां हैं वे सब प्रतिपादित हो चुकी इसकी सूचना के लिये मत्रकारने " से तं आणुपुव्वी" यह कहा है। (आणुपुचीतिपयं समत्त) इस प्रकार यहां तक उपक्रम का यह आनुपूर्वी नाम का प्रथम भेद कथित हो चुका अर्थात् समाप्त हुआ॥स०१४२॥
अब सूत्रकार उपक्रम का जो द्वितीय भेद नाम नाम का है उसकी व्याख्या करने के लिये कहते हैं कि-"से किं तं णामे ?" इत्यादि।
शब्दार्थ - (से किं तं णामे) हे भदन्त ! पूर्वप्रकान्त नाम क्या है ? (णामे दसविहे पण्णत्ते) सूत्रमारे “से त' आणुपुत्री” मा :२ने। सूत्र५४ भूये। छे (आणुपुवीतिपयं समत) मा प्ररे ७५मना भानुभूती नामना प्रथम मनु नि३५ मही समास थाय छे. ।।सू०१४२॥
ઉપકમને બીજો ભેદ “નામ” છે હવે સૂત્રકાર તે નામનું નિરૂપણ કરે છે"से कि त णामे ?" त्याह
शहा-(से कि त णामे ?) 3 भगवन् ! 643मना भी २ ३५ નામ શું છે?