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अनुषोगन्द्रिका टीका स्त्र ११९ अनोपनिधि की क्षेत्रानुपूर्वी निरूपणम् ५१५ संवा द्रव्यानुपाः संग्रहस्य तथा भणितव्यं यावत् सैषा संग्रहस्य भङ्गसमुत्कीर्तमला। एतस्याः खलु संग्रहस्य भासमुत्कीर्तनतायाः किं प्रयोजनम् ? एतया सख संग्रास्य भासमुत्कीर्तनतया संग्रहस्य भनोपदर्शनता क्रियते । अथ काऽसौ संग्रहस्य भगोपदर्शनता ? संग्रहस्य भङ्गोपदर्शनता-त्रिप्रदेशावगाढः पुब्बी, अणाणुपुत्वीय एवं जहा दवाणुपुबीए संगहस्स तहा भाणियव्वं जाव से तं संगहस्स भंगसमुक्तित्तणया) अथवा आनुपूर्वी है अनानुपूर्वी है इस प्रकार जिस रीति से द्रव्यानुपूर्वी के प्रकरण में संग्रहनय मान्य भंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप कहा गया है, उसी प्रकार से इस क्षेत्रानुपूर्वी में भी संग्रनयमोन्य भंगसमुत्कीर्तनता का स्वरूप जानना चाहिये। यह स्वरूप कथन का संग्रह " से तं संगहस्स भंगसमुक्तितणया" इसपाठ तक करना चाहिये । (एयाएणं संगहस्स भंगसमुकितणयाए कि पओयणं? कज्जइ) इस संग्रहनय मान्य भंगसमुत्कीर्त नता का क्या प्रयोजन है ?
उत्तर- (एयाएणं संगहस्स भंगसमुक्कित्तणयाए संगहस्स भंगो वदंसणया कज्जइ) इस संग्रहनय मान्य भंगसमुत्कीर्तनता से संग्रहनय मान्य भंगोपदर्शनता की जाती है। (से किं तं संगहस्स भंगोवदंसणया ? ) हे भदन्त ! संग्रहनय मान्य वह भंगोपदर्शनता क्या है ? अणोणुपुन्वी य, एवं जहा दवाणुपुवीए संगहस्स तहा भाणियव्वं जाव से तं संगहस्य भंगम मुक्कित्तणयो) अथवा “मानुपूकी छे, मनानुपी छे" ઈત્યાદિ જે પ્રકારનું કથન દ્રવ્યાનુપૂર્વીના પ્રકરણમાં સંગ્રહનયસંમત ભંગસમુત્કીર્તનતા વિષયમાં કરવામાં આવ્યું છે એ જ પ્રકારનું કથન આ ક્ષેત્રાનુપૂર્વમાં પણ સંગ્રહનયમાન્ય ભંગસમુકીર્તનતાના વિષયમાં પણ સમજવું नये ॥ यन " से तं संगहस्स भंगसमुक्त्तिणया" मा सूत्रमा पर्यन्त
ये. प्रश्न-(एयाएण संगहस्स भेगस मुक्तित्तणयाए किं पओयण ?) ॥ सभडन. ધમાન્ય ભંગસમુત્કીર્તનતાનું પ્રયોજન શું છે?
उत्तर-(एयाएणं संगहस्स भंगसमुक्त्तिणयाए संगहस्स भंगोवर्दसणया फज्जइ) मा नयभान्य भुडीत नता १3 सनयमान्य गोप. શનતા કરવામાં આવે છે.
प्रल-(से किं तं संगहस्स भैगोवदमण या १) 8 सपन् । अनियमत તે ભગેપદર્શનતાનું સ્વરૂપ કેવું છે?